26000 से ज्यादा गानों को अमर कर गई उनकी आवाज

26000 से ज्यादा गानों को अमर कर गई उनकी आवाज


नई दिल्ली: यादें - मोहम्मद रफी (जन्म 24 दिसंबर 1924, मृत्यु 31 जुलाई 1980) 

भारतीय संगीत जगत के चमकते सितारे मोहम्मद रफी ने 40 साल पहले 31 जुलाई 1980 को इस दुनिया को अलविदा कहा था। रफी एक ऐसे गायक थे कि उनके बिना भारतीय संगीत जगत की कल्पना नहीं की जा सकती है। उनके प्रति लोगों की दीवानगी ऐसी थी कि उनके जनाजे में भारी बारिश के बावजूद करीब 10 हजार लोग शामिल हुए थे। मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को पंजाब कोटला सुल्तान सिंह नाम के एक गांव में हुआ था। बचपन से संगीत के शौकीन रहे रफी 20 साल की उम्र में हिंदी फिल्म जगत में अपनी किस्मत आजमाने मुंबई पहुंचे थे। इससे पहले वे पंजाबी फिल्मों के लिए गा चुके थे। 1945 में फिल्म गांव की गोरी में उन्होंने अपना पहला हिंदी गाना गाया और इसके बाद उनके पास ऑफर  आते रहे और उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

साल 1950 से 1970 के बीच रफी संगीतकारों के सबसे पसंदीदा गायक हुआ करते थे। रफी की एक खासियत यह भी थी कि वे जिस अभिनेता पर गाना फिल्माया जाना है उनकी पर्सनैलिटी को ध्यान में रखते थे। उस हिसाब से अपने आवाज में बदलाव करते थे। अपने सिंगिंग करियर में रफी ने 6 फिल्मफेयर और एक राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड जीता था। मोहम्मद रफी नेलगभग 700 फिल्मों के लिए विभिन्न भारतीय भाषाओं में 26,000 से भी ज्यादा गीत गाए हैं। उन्हों ने अंग्रेजी और अन्य यूरोपीय भाषाओं के गानों में भी अपनी आवाज दी। वर्ष 1965 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा था। 


एक कविता के बाद ही होने लगगी थी बड़े गायकों में गिनती


रफी साहब को एक कविता फिरोज निजामी ने गवाया था लाहौर रेडियो स्टेशन से। इसके बाद रफी साहब की गिनती लाहौर स्टेशन के सम्मानित गायकों में होने लगी थी। उस जमाने में लाहौर भी फिल्म इंडस्ट्री का मरकज हुआ करता था।  उसी इंडस्ट्री की एक फिल्म थी गुलबालोच जिसमें रफी साहब को गाने का मौका मिला। फिल्म  गुलबालोच एक पंजाबी फिल्म थी और रफी साहब के लिए पहला गाना था - सोणी हीरीए तेरी याद ने बहुत सताया था। जीनत बेगम के साथ संगीतकार श्याम सुंदर के संगीत निर्देशन में यह उनका पहला गाना था। 
नौशाद साहब के संगीत निर्देशन में मोहम्मद रफी का आखिरी गाना अली सरदार जाफरी द्वारा लिखित फिल्म हब्बा खातून के लिए था। गाने के बोल थे -जिस रात के ख्वाब आए वह रात आई।


 इस गाने के बाद मोहम्मद रफी साहब नौशाद साहब के गले लिपटकर रो पड़े थे, उन्होंने उनसे कहा था- नौशाद साहब एक मुद्दत बाद एक अच्छा गीत गाया। आज बहुत सूकून मिला, अब जी चाहता है कि इस भरी पूरी दुनिया को छोड़कर चला जाऊं।''

रफी साहब का इंतेकाल
इस गाने का मुआवजा रफी साहब ने नौशाद साहब के लाख इसरार पर भी नहीं लिया और उसी के अगले दिन नौशाद साहब को खबर मिली कि मोहम्मद रफी का इंतेकाल हो गया। 
रमजान में उनका इंतेकाल हुआ था और रमजान में भी अलविदा के दिन। बांद्रा की बड़ी मस्जिद में उनकी नमाजे जनाजा हुई थी। पूरा ट्रैफिक जाम था, क्या हिंदू, क्या सिख, क्या मुसलमान और क्या इसाई, हर कौम तड़कों पर उतर आई।   

रफी साहब ने  हिंदी के अलावा असामी, कोंकणी, भोजपुरी, ओड़िया, पंजाबी, बंगाली, मराठी, सिंधी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगू, माघी, मैथिली, उर्दू, के साथ साथ इंग्लिश, फारसी, अरबी और डच भाषाओं में भी गीत गाए। 


आइए जानते हैं मोहम्मद रफी साहब के बारे में कुछ खास बातें...


- मोहम्मद रफी का जन्म अमृतसर (पंजाब) में हुआ था। एक वक्त के बाद रफी साहब के पिता अपने परिवार के साथ लाहौर चले गए थे।
 - मोहम्मद रफी का निक नेम 'फीको' था और बचपन से ही राह चलते फकीरों को सुनते हुए रफी साहब ने गाना शुरू कर दिया था। 
- मोहम्मद रफी ने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी।
- मात्र 13 साल की उम्र में मोहम्मद रफी ने लाहौर में उस जमाने के मशहूर अभिनेता 'केएल सहगल' के गानों को गाकर पब्लिक परफॉर्मेंस दी थी। 
- मोहम्मद रफी ने मुंबई आकर साल 1944 में पहली बार हिंदी फिल्म के लिए गीत गाया था। 
- मोहम्मद रफी को एक दयालु सिंगर माना जाता था, क्योंकि वो गाने के लिए कभी भी फीस का जिक्र नहीं करते थे और कभी कभी तो 1 रुपये में भी गीत गए दिया करते थे।
 - मोहम्मद रफी ने सबसे ज्यादा डुएट गाने आशा भोसले के साथ गाए ।
- रफी साब ने सिंगर किशोर कुमार के लिए भी उनकी दो फिल्मों बड़े सरकार और रागिनी में आवाज दी थी।
- मोहम्मद रफी को क्या हुआ तेरा वाद गाने के लिए नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। 
- 1967 में उन्हें भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।