आदि शंकराचार्य की जीवन यात्रा का कलाकारों ने किया मंचन
कर्मकाण्ड तो समय के साथ बदल जाता है, लेकिन ब्रह्म मूल है, इसीलिए ब्रह्म ही श्रेष्ठ है। शनिवार को शहीद भवन में मंचित नाटक शिवोहम में कर्मकांड के विद्वान मंडन मिश्र एवं अद्वैत विचार को विश्वभर में पहुंचाने वाले आदि शंकराचार्य के बीच करीब 15 मिनट तक शास्त्रार्थ हुआ। इसमें दर्शकों ने रंगमंच पर दर्शन के एक से बढ़कर एक विचार सुने। वास्तविक शास्त्रार्थ के बारे में गहराई से जानने के लिए नाटक के लेखक सतीश दवे एवं संजय मेहता ने आदि गुरु शंकराचार्य पर कई पुस्तकों का अध्ययन किया। नाटक में हिंदू धर्म का पुनरुत्थान करने वाले आदि गुरु शंकराचार्य की संपूर्ण जीवन यात्रा मंचित की गई। वहीं नाटक के एक रंगकर्मी रूपेश तिवारी की मां का निधन 30 जनवरी को हुआ था। वे प्रयागराज से मां की अस्थियों को विसर्जित कर सीधे भोपाल पहुंचे और नाटक में में प्रस्तुति दी।
गुरु गोविंदपाद जी से ली थी अद्वैत की शिक्षा
नाटक की शुरुआत आदि शंकराचार्य के जन्म से होती है। उनकी माता आर्यबा शंकर का प्रवेश माधवाचार्य जी के गुरुकुल में करवाती हैं। यहां से 3 वर्ष की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे संन्यास लेते हैं और ओंकारेश्वर में गुरु गोविंदपाद जी के आश्रम पहुंचते हैं। आदि शंकराचार्य माहिष्मती पहुंचकर मंडल मिश्र एवं उभय भारती से शास्त्रार्थ कर विजय प्राप्त करते हैं। इसके बाद शंकराचार्य जी भारत का पैदल भ्रमण कर चारों मठों की स्थापना करते हैं और अंत में केदारनाथ में समाधि लेते हैं।