राफेल का स्वागत, लेकिन कीमत पर

राफेल का स्वागत, लेकिन कीमत पर

नई दिल्ली। कांग्रेस ने बुधवार को राफेल लड़ाकू विमानों के पहले जत्थे के भारत आने का स्वागत किया और साथ ही यह भी कहा कि हर देशभक्त को यह पूछना चाहिए कि 526 करोड़ रुपए का विमान 1670 करोड़ रुपए में क्यों खरीदा गया? पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया, कि राफेल का भारत में स्वागत! वायुसेना के जाबांज लड़ाकों को बधाई। सुरजेवाला ने कहा, कि आज हर देशभक्त यह जरूर पूछे कि 526 करोड़ रुपए का एक राफेल अब 1670 करोड़ रुपए में क्यों? 126 राफेल की बजाय 36 राफेल ही क्यों? मेक इन इंडिया के बजाय मेक इन फ्रांस क्यों? 5 साल की देरी क्यों? भारतीय वायु सेना के लिए ऐतिहासिक क्षणों के बीच बुधवार को राफेल लड़ाकू विमानों का पहला जत्था भारत पहुंच गया। फ्रांस से खरीदे गए ये राफेल लड़ाकू विमान अंबाला एयरबेस पर उतरे। इसके फौरन बाद देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देश को ट्वीट कर जानकारी दी कि भारत में राफेल लड़ाकू विमानों का पहुंचना हमारे सैन्य इतिहास में एक नए युग की शुरुआत है। राजनाथ ने दो टूक कहा कि अब किसी को अगर भारतीय वायुसेना की ताकत को लेकर चिंता करना चाहिए, तो उन्हें जो हमारी क्षेत्रीय अखंडता को खतरे में डालना चाहते हैं। बता दें कि राफेल विमानों की पहली खेप देश में पहुंच तो जरूर गई है, लेकिन विपक्षी पार्टियों के सवाल आज भी जस के तस बनो हुए हैं।

आखिर क्या है राफेल विमान?

राफेल फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन द्वारा बनाया गया एक लड़ाकू विमान है। दो इंजन राफेल लड़ाकू जेट को शुरुआत से ही एयर-टू-एयर और एयर-टू-ग्राउंड अटैक के लिए बहु-भूमिका सेनानी के रूप में डिजाइन किया गया है, परमाणु रूप से सक्षम है और इसका पुनर्निर्माण भी किया जा सकता है। तकनीक में उन्नत यह विमान हवाई टोही, ग्राउंड सपोर्ट, इन डेप्थ स्ट्राइक, एंटी-शर्प स्ट्राइक और परमाणु अभियानों को अंजाम देने में दक्ष है। इसमें मल्टी मोज रडार भी लगे हुए हैं।

डील पर विवाद को लेकर अब तक के राजनीतिक घटनाक्रम...

कीमत को लेकर दावा

राफेल की खरीद को लेकर एनडीए सरकार ने दावा किया कि यह सौदा उसने यूपीए से ज्यादा बेहतर कीमत में किया है और करीब 12,600 करोड़ रुपए बचाए हैं, लेकिन 36 विमानों के लिए हुए सौदे की लागत का पूरा विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया। सरकार का दावा था कि पहले भी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की कोई बात नहीं थी। लेकिन मौजूदा समझौते में ‘मेक इन इंडिया’ पहल की गई है।

कांग्रेस के तीन आरोप

कांग्रेस का कहना था कि यूपीए के राफेल समझौते में एक विमान की कीमत 526 करोड़ रुपए थी, जो मोदी सरकार में 15,70 करोड़ रुपए हो गई। वहीं साल 2016 में फ्रांस में हुए समझौते में सुरक्षा पर बनी कैबिनेट कमेटी की मंजूरी नहीं ली गई। इस पर भ्रष्टाचार का केस बनता है? तीसरा, ये कि 36 राफेल इमरजेंसी के लिए तत्काल रूप से लिए गए। अगर ऐसा था तो इतने समय बाद भी एक भी विमान क्यों नहीं मिला है?

मेक इन इंडिया’ नहीं

विपक्ष ने सवाल उठाया था कि अगर सरकार ने हजारों करोड़ रुपए बचा लिए हैं, तो उसे आंकड़े सार्वजनिक करने में क्या दिक्कत है। कांग्रेस के नेताओं का कहना था कि यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपए दे रही थी, जबकि मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ दे रही है। कांग्रेस का कहना था कि बीजेपी सरकार के सौदे में ‘मेक इन इंडिया’ का कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

सौदे में हड़बड़ी क्यों?

विपक्ष का कहना था कि यूपीए सरकार 18 बिल्कुल तैयार विमान खरीदने वाली थी, बाकी 108 विमानों की भारत में एसेंबलिंग की जानी थी। इसके अलावा इस सौदे में ट्रांसफर आफ टेक्नोलॉजी की बात की गई थी, ताकि बाद में भारत में इन विमानों को बनाया जा सके। कांग्रेस का कहना था कि जब यूपीए सरकार सस्ते और व्यापक सौदे पर बात कर रही थी, तो इस सौदे को करने की एनडीए सरकार को इतनी हड़बड़ी क्यों थी?

पीएम से मांगा था जवाब

राफेल विमान मुद्दे को लेकर विपक्ष ने इतना हंगामा किया कि कई बार लोकसभा और राज्यसभा की कार्रवाई स्थगित करनी पड़ी। विपक्ष की मांग थी कि पीएम मोदी इसपर सफाई दें, लेकिन मोदी ने कुछ नहीं कहा। विपक्ष की मांग थी कि इसकी जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाए, जिसे मोदी सरकार ने नहीं माना। इसकी जांच कैग से कराई गई थी। जिसमें सरकार को क्लीनचिट मिली थी।