नगरीय निकायों का कमाई पर जोर नहीं ताकते रहते हैं केंद्र-राज्य सरकारों का मुंह

नगरीय निकायों का कमाई पर जोर नहीं ताकते रहते हैं केंद्र-राज्य सरकारों का मुंह

भोपाल। भले ही पिछले कई वर्षों से केंद्र और राज्य सरकारों का एक बड़ा फोकस नगरीय विकास पर रहा है मगर भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट ने देशभर की नगरपालिकाओं के आर्थिक हालत पर चिंता जताई है। आरबीआई ने रिपोर्ट में कहा है कि वे अपने खुद के राजस्व के बजाय राज्य और केंद्र सरकारों से मिलने वाले अनुदान पर ज्यादा निर्भर होती जा रही हैं। म्यूनिसिपल फाइनेंस पर रिपोर्ट में कहा गया है कि यह स्थिति नुकसानदायक है, क्योंकि वित्तीय स्वायत्तता के मामले में भारत के निकाय बेहद कमजोर हालत में हैं। देश भर की 201 नगरपालिकाओं (एमसी) के बजटीय आंकड़ों का संकलन और विश्लेषण करती हुई रिपोर्ट में कहा गया है कि एक दशक से ज्यादा समय से भारत में नगर पालिका का राजस्व-व्यय जीडीपी के लगभग एक प्रतिशत पर स्थिर है। वहीं, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की नगरपालिका की स्थिति इसके विपरीत है। जहां ब्राजील में नगर पालिका राजस्व-व्यय, जीडीपी का 7.4 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका में 6 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरीकरण की तीव्र वृद्धि के अनुरूप शहरी अवसंरचना में वृद्धि नहीं हुई है, जिसके चलते भारत की शहरी आबादी के लिए जरूरी सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता खराब बनी हुई है।

राज्य और केंद्र पर निर्भरता कमजोर बना रही

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यूएलबी में जहां एक तरफ उनके राजस्व (जिन्हें वे अपने टैक्स और नॉन- टैक्स स्रोतों के जरिए अपने दम पर जुटा सकते हैं) का हिस्सा घट रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ सरकारी हस्तांतरण का हिस्सा बढ़ रहा है। यह सरकार के अनुदानों पर बढ़ती राजकोषीय निर्भरता को दर्शाता है। आरबीआई ने कहा, ‘स्थानीय निकायों की अपने खर्च की जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों पर अधिक निर्भरता उन्हें कमजोर और कम कुशल बना रही है।’

इनोवेटिव फाइनेंसिंग मैकेनिज्म पर जोर

आरबीआई ने कहा है, तेजी से बढ़ रही शहरी आबादी का मतलब है कि शहर के बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय सुधार की जरूरत है और इसके लिए स्थानीय निकायों को ज्यादा से ज्यादा वित्तीय संसाधनों की जरूरत होगी। इसके लिए आरबीआई ने इनोवेटिव फाइनेंसिंग मैकेनिज्म की आवश्यकता बताई है। आरबीआई ने कहा है कि नगर पालिकाओं के पास वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों को अपनाने के कई तरीके हैं, जिसमें बैंकों से कर्ज लेना, बॉन्ड मार्केट फंड जुटाना और पूल फाइनेंसिंग शामिल है, जहां कई स्थानीय निकायों के संसाधनों को एकत्रित करके, यूएलबी की कैपिटल मार्केट तक पहुंच को एक आम बॉन्ड के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है। आरबीआई ने सुझाव दिया, स्थानीय सरकारें भी नगरपालिका बॉन्ड जारी करके पूंजी बाजार का दोहन कर सकती हैं। आरबीआई के अनुसार स्टॉक एक्सचेंजों में म्यूनिसिपल बॉन्ड को सूचीबद्ध करने से भारत में म्यूनिसिपल बॉन्ड्स के लिए सेकेंडरी मार्केट का रास्ता खुल सकता है।

भोपाल समेत 9 शहर कर चुके हैं

यह प्रयोग रिपोर्ट में कहा गया है, हाल के समय में भारत में नगरपालिका बॉन्ड को फिर से जारी किया गया है। इससे नौ नगर पालिकाओं ने 2017-21 के दौरान लगभग 3,840 करोड़ रुपए जुटाए हैं। ये 9 नगरपालिकाएं हैं: अहमदाबाद, आंध्र प्रदेश राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण, भोपाल, गाजियाबाद, ग्रेटर हैदराबाद, इंदौर, लखनऊ, पुणे और सूरत।

चीन से सीख लेने की आरबीआई ने दी सलाह

आरबीआई ने कहा कि भारतीय नगर निगम चीन के मॉडल से सीख ले सकते हैं और फंड जुटाने के लिए स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी) बना सकते हैं। नगर निगम के स्पेशल पर्पज व्हीकल और राज्य के सामूहिक फाइनेंस संस्थानों के जरिए फाइनेंस के विकल्प को चुन सकते हैं। चीन की लोकल गवर्मेंट फाइनेंसिंग व्हीकल एक निवेश कंपनी है जो रिएल स्टेट डवलपमेंट और अन्य स्थानीय इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के फाइनेंस के लिए बॉन्ड बाजारों में बॉन्ड बेचती है।