सम्राट अकबर की मां पढ़ती थीं रामायण, दोहा में सुरक्षित है वह कॉपी

महल के खंभे पर देखा जा सकता है भगवान राम के दरबार का दृश्य

सम्राट अकबर की मां पढ़ती थीं रामायण, दोहा में सुरक्षित है वह कॉपी

नई दिल्ली। मुगल काल में भगवान राम का प्रभाव शहंशाह अकबर के ऊपर देखा जा सकता है। अकबर की मां हमीदा बानो बेगम के मरियम महल में पिलर पर भगवान राम का दरबार देखा जा सकता है। सम्राट अकबर और उनकी मां हमीदा बानो बेगम श्रीराम और रामकथा के प्रति आदरभाव से ओत-प्रोत थे। अकबर और हमीदा बानो ने रामायण का सचित्र अनुवाद करवाया जो पुस्तकालयों में आज भी सुरक्षित है। दोहा के इस्लामिक कला संग्रहालय में आज भी वह रामायण है जिसका फारसी में अनुवाद कराया गया था। सम्राट अकबर के आदेश पर ही ऐसा किया गया था ये मध्यकालीन भारत में अलग-अलग संस्कृतियों के मिलन का एक बेहतरीन उदाहरण है। ये काम अकबर के कहने पर हुआ था और उनका अपना एक खूबसूरत हस्तलेख भी था। लोगों को रामायण इतनी पसंद आई कि दरबार के कई रईसों ने भी खुद की प्रतियां बनवाईं। इस रामायण में 56 बड़े चित्र थे। इसकी शुरूआत एक खूबसूरत फूल और सोने के नाजुक चित्रों से सजी हुई है। वाल्मीकि ने रामायण की रचना कैसे की इसकी एक फ्रेमिंग है। पांडुलिपि के बाहरी किनारों को काट दिया गया है। अकबर के दरबार में विभिन्न धर्मों और क्षेत्रों से विद्वान और कलाकार जुटते थे।

हमीदा बानो की रामायण का सफर

सन 2000 में कतर के शेख सऊद अल थानी के खरीदने से पहले, हामिदा बानो की रामायण कई हाथों से गुजरी। शेख ने इससे अलग किए गए अधिकांश चित्रों को भी प्राप्त किया, ताकि इसे पूरा फिर से बनाया जा सके। अकबर के शासनकाल में तूतीनामा के अलावा रामायण और महाभारत का फारसी में अनुवाद किया गया। अनुवाद में राम तो राम ही रहते हैं, लेकिन दशरथ जसवंत बन जाते हैं। अगस्त्य का नाम का बदल जाता है। अनुवाद में मेल बिठाने की कोशिश भी की गई हैं। अशोक वाटिका को महल के मंडप के रूप में दिखाया गया है और लाल झालरों वाले गहने कलाकार की अपनी रचनात्मकता दर्शाते हैं। चित्र राम के दिव्य राज पर जोर देते हैं। मुगल दरबार के लिए विशेष रुचि का विषय रामायण रहा। दोहा रामायण 16वीं सदी के उत्तर भारत की भाषा, कला और साहित्य की झलक है। इससे पता चलता है कि कैसे मुगलों को रामायण और शासन करने के दैवीय अधिकार की धारणाओं में विशेष रुचि थी। महाकाव्य में हमीदा बानो की विशेष रुचि उल्लेखनीय है, और कहा जाता है कि वह सीता द्वारा दिखाए गए धैर्य और कठिनाई से काफी प्रभावित थीं। 1990 के दशक तक अज्ञात यह रामायण मुगल-प्रायोजित संस्कृत ग्रंथों के इतिहास में एक मील का पत्थर है।