विश्व पटल पर हिंदी फल-फूल रही, बावजूद इसके राष्ट्रभाषा घोषित न होना आश्चर्यजनक

विश्व पटल पर हिंदी फल-फूल रही, बावजूद इसके राष्ट्रभाषा घोषित न होना आश्चर्यजनक

जबलपुर । 14 सितम्बर को हर वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने भी नई शिक्षा नीति में बदलाव किया है। नई शिक्षा नीति जो आई है, इससे भी हिंदी एवं भारतीय भाषाओ को संबल मिलेगा। क्योंकि नई शिक्षा नीति में प्राईमरी स्कूलों में इसके अध्ययन के लिए विशेष पाठ्यक्रम के रुप जोड़ा गया है। चाहे वह हिंदी मीडियम हो या फिर इंग्लिश मीडियम में इनमें क्षेत्रीय हिंदी भाषा का अध्यापन कराना अनिवार्य कर दिया गया है। जिससे भी आज की भावी पीढ़ी को भी भारतीय संस्कृति और भारतीय संस्कारों से भलीभांति परिचित हो सकेगी। गौरतलब है कि विश्व पटल पर भी हिंदी फल-फूल रही है और आज के समय में लोगों की आवश्यक बनकर उभरी है। सोशल मीडिया,फिल्म जगत,सीरियल या फिर अखबारों सहित अन्य में हिंदी का एक अलग वर्चस्व है। बावजूद इसके इसे राष्ट्रभाषा घोषित न होना आश्चर्यजनक है। क्योंकि विश्व के हर देश की अपनी एक राष्ट्रभाषा होती है, लेकिन भारत एक ऐसा देश है जिसने हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया है जबकि हिंदी रोजगार से लेकर सभी में सेतु का काम कर रही है।

रेलवे का भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में अहम योगदान

शहर के हिंदी के जानकारों ने बताया कि हिंदी का प्रचार-प्रसार करने में रेलवे का भी महत्वपूर्ण योगदान है। क्योंकि जम्मू कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के जो लोग है वे यहां से वहां जब सफर करते है तो हिंदी भाषी का प्रयोग लोग एक दूसरे से जरुर करते है। यही नहीं व्यापार के लिए भी टूटी-फूटी हिंदी लोगों को सीखनी पड़ती है,तभी व्यापार आज के समय में किया जा सकता है।

साहित्यिक परम्पराओं की शुरूआत कलचुरि काल से हुई

शहर और हिन्दी का नाता पुराना है । मान्यताओं के अनुसार जबलपुर में साहित्यिक परम्पराओं की शुरूआत कलचुरि काल से हुई है। इस शहर से जुड़े कवियों और लेखकों ने कई कालजयी रचनाएं दी। हिन्दी की कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन की 'पहल जबलपुर से हुई। इनमें से कुछ पत्र-पत्रिकाएं सृजन के उस श्खिर तक पहुंची जहां हिन्दी के साथ ही शहर को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिली। ये शहर के कवियों, लेखकों और साहित्यक संगठनों का ही प्रयास है कि आज जबलपुर हिन्दी सृजन, विचार और संगठन की त्रिवेणी है।

1900 से गोष्ठियों की शुरूआत

भारतेंदु युग के ठाकुर जगमोहन सिंह शृंगार रस के कवि और गद्य लेखक के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। उनका जिक्र रामचंद्र शुक्ल ने भी किया है। सन 1900 के बाद जबलपुर में कई साहित्यिक संगठन बने और कवि गोष्ठियों की शुरूआत हुई, जो आज भी जारी है। उस समय के कवियों में लक्ष्मी प्रसाद पाठक, विनायक राव, जगन्नाथ प्रसाद मिश्र, बाबूलाल शुक्ल, सुखराम चौबे, छन्नूलाल वाजपेयी का नाम उल्लेखनीय है। जबलपुर साहित्यिक पत्रिकाओं के प्रकाशन में भी अग्रणी रहा है। काव्य सुधा निधि के संपादक रघुवर प्रसाद द्विवेदी ने छंद काव्य को व्यवस्थित रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।