खराब टायरों वाली गाड़ी नशे में वाहन चलाने से ज्यादा घातक

खराब टायरों वाली गाड़ी नशे में वाहन चलाने से ज्यादा घातक

लंदन। खराब टायर वाली गाड़ी चलाना नशे में वाहन चलाने से ज्यादा जानलेवा होता है। इंग्लैंड की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। नशे में वाहन चलाने से रिएक्शन टाइम में कमी आ जाने के कारण ड्रायवर से ब्रेक लगाने में देर हो जाती है और स्टॉपिंग डिस्टेंस बढ़ जाता है। अब अध्ययन से पता चला है कि खराब टायरों वाली गाड़ी से यह डिस्टेंस शराब पीकर वाहन चलाने की तुलना में सात गुना और बढ़ जाता है जो खतरानक है। टायरों की ट्रीड सीमा बढ़ाने की जरुरत अध्ययन के नतीजों ने दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए टायरों की ट्रीड (टायरों की आखिरी परत की मोटाई) सीमा 1.6 मिमि से बढ़ाने की जरूरत पर सोचने को मजबूर कर दिया है। लगभग 35 फीसद गंभीर सड़क दुर्घटनाएं शराब पीकर वाहन चलाने से होती हैं, क्योंकि अल्कोहल रिएक्शन टाइम में देरी कर देता है और स्टापिंग डिस्टेंस बढ़ जाता है। यही काम खराब टायरों से भी होता है।

खराब टायरों से 7 गुना बढ़ जाता है स्टॉपिंग डिस्टेंस

अध्ययन में यह पाया गया है कि औसतन शराब पीकर वाहन चलाने से ड्रायवर को ब्रेक लगाने में तय समय से 18 प्रतिशत या 120 मिली सेकेंड की देर हो जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि 70 मील प्रति घंटे की रμतार से चल रहे वाहन में स्टॉपिंग डिस्टेंस 12.4 फीट रह जाता है। अध्ययन के नतीजों से यह खुलासा हुआ है कि 1.6 मिमी ट्रीड वाले टायर की सड़क पर पकड़ नए टायर की तुलना में 36 प्रतिशत कम हो जाती है, जिसके कारण स्टॉपिंग डिस्टेंस 89 फीट ज्यादा हो जाता है। हालांकि टायरों के ट्रीड की वैधानिक सीमा 1.6 मिमी है लेकिन अच्छे टायरों में ट्रीड 4 मिमी होता है।

वर्षों पुरानी है टायरों के ट्रीड की न्यूनतम सीमा

आॅटो प्रोडक्ट्स कंपनी हालफोडर््स के सीईओ ग्राहम स्टप्लेटन ने कहा कि टायरों के ट्रीड की वर्तमान सीमा बहुत कम है तथा इसे वर्ष 1986 के बाद से नहीं बदला गया है। कार्डिफ यूनिवर्सिटी में इस अध्ययन को करने वाले प्रोफेसर पीटर वेल्स का कहना है कि जब हमने रिसर्च शुरू की थी तब हमें नहीं मालूम था कि वाहनों के स्टॉपिंग डिस्टेंस को कम करने के लिए शराब या खराब टायर में से कौन सा कारण ज्यादा जिम्मेदार है, क्योंकि इनकी पहले तुलना नहीं की गई।