आवासीय को व्यवसायिक करने में कोताही, नगर निगम को हर साल करोड़ों का नुकसान

आवासीय को व्यवसायिक करने में कोताही, नगर निगम को हर साल करोड़ों का नुकसान

जबलपुर । शहर में हजारों संपत्तियां ऐसी हैं जो टैक्स तो आवासीय का देती हैं मगर अपने आवास में ही बने व्यवसायिक निर्माणों का टैक्स नहीं देती हैं। इसमें संबंधित राजस्व निरीक्षक की मेहरबानी होती है जिनकी जवाबदेही होती है कि वे अपने क्षेत्र में हुए निर्माणों की जांच करें और यदि किसी भी आवासीय भवन में व्यवसायिक गतिविधियां होती हैं तो उनका अलग से करारोपण करें। इससे हर साल नगर निगम के खजाने को करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। पाई-पाई को मोहताज नगर निगम अपने खर्चों को कम करने में लगा हुआ है। यहां तक कि आउट सोर्स के नाम पर कम वेतन पर काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों को जो परिवार चलाते हैं को भी बाहर किया जा रहा है,मगर आय बढ़ाने की ओर सिवाय संपत्तिकर व जलशुल्क की वसूली के अलावा उन छिद्रों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है जहां से हर साल करोड़ों रुपए आ सकते हैं। शहर में इस तरह के हजारों निर्माण मिल सकते हैं जो टैक्स तो आवासीय का देते हैं मगर अपने भवनों में दुकानों का संचालन करते हैं। वे किराया तो भरपूर वसूल करते हैं मगर नगर निगम को कम टैक्स देना चाहते हैं। नगर निगम के पास ऐसे भवनों का रिकॉर्ड ही नहीं है। ज्यादातर ऐसे निर्माण कॉलोनियों और बस्तियों में स्थित हैं।

ऐसा है टैक्स का गणित

आवासीय भवन का 1रुपए 20 पैसे से लेकर 1.30 पैसे प्रति वर्ग फीट टैक्स लगता है। वहीं व्यवसायिक निर्माण पर 2 रुपए 50 पैसे से लेकर 2.75 पैसे प्रति वर्ग फीट टैक्स लगता है। जाहिर है कि यह दोगुना होता है,इससे बचने के लिए लोग जांच करने आने वाले राजस्व कर्मचारियों को ऊपरी चढ़ावे के रूप में मुंहमांगी राशि दे देते हैं और अपने भवन में बनीं दुकानों या अन्य व्यवसायिक संपत्ति को आवासीय में ही रखवा लेते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि नगर निगम को संपत्तिकर के रूप में 70 करोड़ रुपए मिलते हैं तो इसमें व्यवसायिक टैक्स के रूप में मात्र 15 करोड़ ही मिलते हैं।

निगमायुक्त बदलते ही बदल जाता है लक्ष्य

तत्कालीन निगमायुक्त वेदप्रकाश के समय 50 हजार नई संपत्तियां खोजने के लक्ष्य मेंराजस्व अमले को लगाया गया था। उनका तबादला हुआ और उनके बाद अब तीसरे निगमायुक्त आ चुके हैं।इस लक्ष्य को अब याद भी नहीं किया जाता। अब तक 13 हजार 900 संपत्तियां खोजी गई हैऔर इन्हें टैक्स के दायरे में लाया गया है। इस काम में यदि सख्ती और ईमानदारी बरती जाए तो इतने बड़े शहर में 50 हजार नई संपत्तियां खोजना मुश्किल काम नहीं है जिनसे कम से कम 10 करोड़ रुपए हर साल टैक्स आसानी से मिल सकता है।