इंटरनेट पर अजनबी बन रहे बच्चों के दोस्त रहें सतर्क

इंटरनेट पर अजनबी बन रहे बच्चों के दोस्त रहें सतर्क

नई दिल्ली। बदलते जमाने में टेक्नोलॉजी का दखल इतना ज्यादा बढ़ गया है कि छोटे-छोटे बच्चे भी इंटरनेट का बहुत इस्तेमाल करने लगे हैं। इसबीच हाल ही में एक सर्वे रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सर्वे में 424 माता िपता ने भाग लिया। इसमें से 33 प्रतिशत ने कबूल किया कि आॅनलाइन सर्फिंग करते समय अजनबियों ने उनके बच्चों से कॉन्टेक्ट करने की कोशिश की। इन लोगों ने दोस्ती करने के साथ-साथ बच्चों से उनकी निजी और परिवार की जानकारी भी मांगी। अनजान लोगों ने बच्चों को सेक्स से संबंधित जानकारी भी दी। पैरेंट्स ने बताया बच्चों को कॉन्टेक्ट करने वाले अजनबियों ने बच्चों के साथ अश्लील कंटेंट भी शेयर किया। बता दें, बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एनजीओ चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) व पटना की चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (सीएनएलयू) ने संयुक्त रूप से इस मसले पर अध्ययन किया है। यह शोध पॉक्सो एक्ट यानी प्रोटेक्शन आॅफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल आॅफेंस एक्ट, 2012 के 10 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में किया गया। जिसका शीर्षक है- पॉक्सो एंड बियॉन्ड: अंडरस्टैंडिंग आॅन आॅनलाइन सेμटी थ्रू कोविड।

मप्र समेत 4 राज्यों के पैरेंट्स शामिल

इस रिसर्च को करने के लिए महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के 424 अभिभावकों के अलावा 384 शिक्षकों और तीन राज्यों (पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र) के 107 लोगों को भी शामिल किया गया। सर्वे में शामिल हुए माता-पिता के मुताबिक आॅनलाइन यौन उत्पीड़न का शिकार हुए बच्चों में 40%लड़कियां थीं। इनकी उम्र 14 से 18 साल के बीच थी। उत्पीड़न का शिकार होने वाले इस उम्र के लड़कों की तादाद 33%थी।

सिर्फ 30 फीसदी पैरेंट्स पुलिस के पास जाने को तैयार

सर्वे में माता-पिता से पूछा गया कि अगर उनके बच्चे को आॅनलाइन यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा तो वे क्या करेंगे। सिर्फ 30 फीसदी माता-पिता ने ही कहा कि वे पुलिस स्टेशन जाकर शिकायत दर्ज कराएंगे. जबकि 70 फीसदी लोगों ने पुलिस स्टेशन जाने की बात को खारिज कर दिया।

पीड़ित बच्चे स्कूल जाने में करते हैं आनाकानी

सर्वे में 16% पैरेंट्स को ही बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न होने पर ली जाने वाली कानूनी मदद की जानकारी थी। इसके शिकार होने वाले बच्चों में दो संकेत ज्यादा देखे गए। ऐसे बच्चे (26%) बिना किसी कारण के लगातार स्कूल से अनुपस्थित रहते हैं। कुछ मामलों में पीड़ित बच्चों (20.9%) ने स्कूल में स्मार्टफोन ज्यादा इस्तेमाल शुरू किया।

बच्चों की तस्करी में भी इंटरनेट का इस्तेमाल

शोध में यह भी सामने आया कि भारत में बच्चों की तस्करी के लिए भी इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा रहा है। अपराधी इसके लिए ज्यादातर बेहद कम उम्र के बच्चों को ही निशाना बनाते हैं। इन घटनाओं के लिए बने प्रावधानों का फिर से मूल्यांकन करने की जरूरत है। - सोहा मोइत्रा, डेवलपमेंट सपोर्ट डायरेक्टर, चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई)