घर वाले राइटिंग के लिए इनकरेज तो करते है लेकिन राइटर बनने के लिए नहीं

घर वाले राइटिंग के लिए इनकरेज तो करते है लेकिन राइटर बनने के लिए नहीं

 मुझे शुरू से ही राइटर बनाना था। जब राइटिंग शुरू की तो कई बार ऐसा हुआ की एक्टर नहीं मिलते थे, तो हमें खुद ही एक्टिंग करनी पड़ती थी। जब राइटिंग शुरू की थी, तो उस समय न बजट होते थे, न पता था कि यह मीडियम इतना बड़ा होगा। कहानी लिखकर कई बार खुद ही डायरेक्ट की और एक्ट भी किया है। यह कहना था, जादूगर फिल्म के राइटर विश्वपति सरकार का। उन्होंने कहा कि मेरा फोकस राइटिंग पर ही है लेकिन एक्टिंग करने का मौका मिलता है तो मैं मना नहीं करता हूं। लोगों से सुना तो पिता को भरोसा आया : विश्वपति कहते हैं कि मैं बंगाली परिवार से आता हूं। घरवाले राइटिंग और किताब पढ़ने के लिए हॉबी में तो बहुत प्रोत्साहित करते हैं लेकिन राइटर बनने के लिए नहीं कहते। मुझे शुरुआत के दो-तीन साल तो घरवालों को समझाने में लगे। लेकिन जब लोगों ने घरवालों से कहा कि आपके बेटे के बारे में पढ़ा है, तो उन्होंने भी भरोसा आ गया। इसके बाद वह खुद कहते हैं कि यह फिल्म देख लेना या यह कर लेना।

वेब सीरीज स्टोरी के लिए लेखन पर पकड़ जरूरी

विश्वपति कहते हैं कि वेब सीरीज में आपको लिखने के लिए वक्त दिया जाता है। आठ घंटे की कहानी आप बिना अच्छी राइटिंग के नहीं कह सकते। स्टार हो तो आप दो घंटे निकाल भी लेंगे। लेकिन आठ घंटे की कहानी कहना बहुत मुश्किल है।

आईआईटी के दौरान सोचा था कि राइटिंग में एक बार ट्राई करते हैं : समीर सक्सेना

डायरेक्टर समीर सक्सेना कहते हैं कि कोटा फैक्ट्री राइटर सौरभ खन्ना ने लिखी है, जो कि हमारे पार्टनर हैं। कोटा फैक्ट्री का खयाल बहुत नैचुरली आया कि हम सब लोग कोटा से पढ़े हुए हैं। हम उस फैक्ट्री के प्रोडक्ट्स हैं, इसलिए वह हमारे अंदर कहानी छुपी हुई थी। हमें लगा कि यह कहानी कोई और नहीं कह रहा है, इसलिए इसे बनाने का सोचा। राइटिंग को चयन करने के सवाल पर समीर कहते हैं कि बचपन से राइटिंग करने की चाह थी, आईआईटी के दौरान सोचा की राइटिंग एक बार ट्राई करते हैं, हममें टैलेंट होगा तो चीजें अच्छी निकलकर आएंगी, नहीं तो हमारे पास आईआईटी का एक आॅप्शन और था।

दो से तीन साल में लोगों को कहानी अच्छी लगने लगी : समीर कहते हैं कि 12वीं के बाद हमें दो ही आॅप्शन थे, इंजीनियरिंग करों या तो मेडिकल करो। न कोई राइटिंग का कोर्स है, न ही फिल्म मेकिंग का। लेकिन आप पढ़ाई में अच्छे हो तो टीचर्स से लेकर पैरेंट्स तक सपोर्ट करने लगते है। आईआईटी जाने के बाद आप इतने अलग-अलग लोगों से मिलते हैं, तो आपको भी हिम्मत आती है। इसके बाद लिखने की शुरुआत की और दो से तीन साल में लोगों को हमारी कहानी अच्छी लगने लगी। उन्होंने कहा कि भोपाल में शूट करके बहुत मजा आया था, यहां के लोगों ने बहुत सपोर्ट किया। एक दो प्रोजेक्ट है, जिस पर काम चल रहा है, इसे जल्द ही भोपाल में शूट करेंगे।

अब भारतीय कहानी कहने लगे हैं

फिल्म, टीवी और बेव सीरीज के सवाल पर कहा कि अब हम भारतीय कहानी कहने लगे हैं। अभी भी राइटिंग में बहुत चैलेंज है लेकिन जो हमने चीजें बनाई हैं, वह यहां के माहौल में रिलेट करती हैं।