भारत समेत दुनिया के पुरुषों का स्पर्म काउंट 50% गिरा

भारत समेत दुनिया के पुरुषों का स्पर्म काउंट 50% गिरा

यरुशलम। भारत समेत दुनिया भर के पुरुषों का स्पर्म काउंट कम हो रहा है। वैज्ञानिकों की एक टीम ने सात सालों तक की गई रिसर्च के बाद ये दावा किया है। ये रिसर्च ह्यूमन रिप्रोडक्शन अपेडट जर्नल में प्रकाशित की गई है जो 2011 से 2018 के बीच की गई थी। इसमें लगभग सात सालों का समय लगा और जो नतीजे सामने आए, उससे वैज्ञानिक भी हैरान रह गए। ये शोध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया गया था जिसमें वैज्ञानिकों की कई टीमों ने हिस्सा लिया। स्टडी के अनुसार 1973 से 2018 के बीच पुरुषों के एवरेज स्पर्म काउंट में 51.6 प्रतिशत की कमी आई है। इस दौरान उन्होंने 53 देशों के 57,000 से अधिक पुरुषों के शुक्राणुओं के नमूनों के आधार पर 223 अध्ययन किए। इसमें दक्षिण अमेरिका, एशिया और अफ्रीका के देश शामिल थे, जहां इससे पहले कभी इस तरह का अध्ययन नहीं किया गया था। अध्ययन के अनुसार पहली बार इन इलाकों के लोगों पर अध्ययन किया गया और यहां के लोगों में भी टोटल स्पर्म काउंट और स्पर्म कॉन्सन्ट्रेशन में कमी देखी गई। इससे पहले उत्तरी अमेरिका, यूरोप और आॅस्ट्रेलिया में इस तरह की रिसर्च हो चुकी है और वहां भी ऐसे ही आंकड़े पाए गए।

वर्ष 2000 के बाद लगातार स्पर्म काउंट मे गिरावट

शोध में शामिल देशों के पुरुषों में शुक्राणु एकाग्रता 101.2एम प्रति मिलीलीटर से 49.0एम प्रति मिलीलीटर रह गई है। रिसर्च ने बताया कि पुरुषों के टोटल स्पर्म काउंट में भी गिरावट दर्ज की गई है। इसी समयकाल में कुल शुक्राणुओं की संख्या में 62.3 प्रतिशत की कमी दिखी। आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2000 के बाद हर साल स्पर्म काउंट में 2.64 प्रतिशत की गिरावट हुई, जो कि इससे पहले के समयकाल से काफी ज्यादा है।

स्पर्म कम होने से कैंसर समेत कई बीमारियों का खतरा : शुक्राणुओं की संख्या ना केवल प्रजनन की क्षमता से जुड़ी होती है, बल्कि इसका असर पुरुषों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। स्पर्म काउंट की कमी टेस्टिकुलर (रिप्रोडक्टिव पार्ट) कैंसर समेत कई बीमारियों का कारण बन सकती है और ये पुरुषों के जीवनकाल को भी प्रभावित करती है।

खराब जीवनशैली और केमिकल है कारण

रिसर्च में शामिल इजराइल के यरुशलम की हिब्रू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेगाई लेविन ने कहा, रिसर्च में हमने पाया कि भारत में भी स्पर्म काउंट काफी कम हुआ है। हालांकि यह पूरी दुनिया के जैसा ही है। खराब जीवनशैली और वातावरण में मौजूद खतरनाक केमिकल स्पर्म क्वालिटी के गिरने की प्रमुख वजहों में एक है। ये हालात किसी महामारी जैसे हैं। ये हर जगह हो रहा है।

देना होगा इस पर विशेष ध्यान

इंसानों समेत दुनिया की हर एक प्रजाति को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि उन्हें स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण उपलब्ध कराया जाए। साथ ही प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले कारकों को खत्म किया जाए। हमारे सामने एक गंभीर समस्या है जिससे अगर नहीं निपटा गया तो इंसानों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। भारत में अलग से रिसर्च की जानी चाहिए। -प्रो. हेगाई लेविन, हिब्रू यूनिवर्सिटी, इजरायल