लॉकडाउन का फैसला सही नहीं था, इससे अर्थव्यवस्था को करीब 10 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा...

लॉकडाउन का फैसला सही नहीं था, इससे अर्थव्यवस्था को करीब 10 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा...

नई दिल्ली। कोरोना वायरस से जूझ रही देश की अर्थव्यवस्था को पहली तिमाही में तगड़ा झटका लगा है। अप्रैल से जून 2020 की पहली तिमाही में जीडीपी में करीब 24 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आई है। इसे देखते हुए इस पूरे वित्त वर्ष में जीडीपी में बड़ी गिरावट का अनुमान है। जीडीपी में संभावित इस गिरावट का देश और विभिन्न तबकों के लिए क्या मायने हैं, पेश हैं इस बारे में पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग से बातचीत के अंश।

जीडीपी में बड़ी गिरावट का अनुमान है। लोगों के लिए इसके क्या मायने हैं?

अर्थव्यवस्था के तीन हिस्से हैं, पहला- श्रमिक, वेतन भोगी। दूसरा- उद्योगपति और तीसरा- सरकार जो टैक्स लेती है। माना कि 100 रुपए की आय है तो इसमें से 60- 65 प्रतिशत श्रमिक, वेतनभोगी तबके को जाता है। 20 से 25 प्रतिशत सरकार को और 15 से 20 प्रतिशत उद्योगपति कमाता है। अर्थव्यवस्था में 10 प्रतिशत की गिरावट आती है करीब 20 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा। जाहिर है, सबकी कमाई घटेगी।

जीएसटी संग्रह भी सुधर रहा है, कारों की बिक्री बढ़ी है, इसका क्या असर होगा?

जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वे सामान्य नहीं नीचे ही हैं। जीएसटी के आंकड़े सामान्य स्तर पर नहीं पहुंचे हैं। सेवा क्षेत्र में भी गिरावट है। ऐसे में दूसरी तिमाही में भी अर्थव्यवस्था में 12 से 15 प्रतिशत का संकुचन रहेगा। तीसरी तिमाही में यह कुछ सुधरेगा फिर भी 4 से 5 प्रतिशत की गिरावट रह सकती है। चौथी तिमाही में कहीं जाकर यह सामान्य हो पाएगा। इस लिहाज से जीडीपी में 10 से 11% की गिरावट रह सकती है।

आपको क्या लगता है, जीडीपी में गिरावट की मुख्य वजह लॉकडाउन है?

लॉकडाउन का फैसला कोरोना को रोकने के लिए था। यदि यह देखा जाए कि यह रणनीति सही या गलत थी, तो निश्चित रूप से यह रणनीति सही नहीं थी। इससे आर्थिक नुकसान ज्यादा हुआ है। लॉकडाउन से उस समय कोरोना वायरस का प्रसार जरूर धीमा पड़ा लेकिन अर्थव्यवस्था को उससे कहीं ज्यादा नुकसान हुआ। हमें अर्थव्यवस्था को नजरअंदाज किए बिना रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए था।

डिजिटल भुगतान बढ़ने के बावजूद अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का असर है या नहीं?

पहले अर्थव्यवस्था में असंगठित गतिविधियों का बड़ा हिस्सा था। ज्यादातर भुगतान कैश में होता रहा है। 25- 30 प्रतिशत अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का भारी असर पड़ा। लेकिन इसका एक असर यह भी हुआ कि असंगठित क्षेत्र का काफी कारोबार संगठित क्षेत्र में होने लगा । उनमें लेन-देन औपचारिक प्रणाली में बदला। मुझे नहीं लगता कि नोटबंदी का असर अभी भी है। इसके बाद आर्थिक वृद्धि में सुधार आया है।

सरकार को आगे क्या कदम उठाने चाहिए, ताकि अर्थव्यवस्था सुधरे?

सरकार को तीन क्षेत्रों में काम करना चाहिए। एमएसएमई में एक बड़ा वर्ग है, जो अछूता है, सरकार को उन्हें सीधे अनुदान देना चाहिए। दूसरा वर्ग करीब 10- 12 करोड़ कामगारों का है, जिनके पास कोई काम नहीं रहा, उनकी मदद की जानी चाहिए। तीसरा, सरकार को समग्र अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न ढांचागत क्षेत्रों में पूंजी व्यय बढ़ाना चाहिए। कई क्षेत्रों में नीतिगत समस्याएं आड़े आ रही हैं, उन्हें दूर करना चाहिए ।