कालबेलिया समाज की लड़कियों ने मजबूरी में पढ़ाई छोड़ नृत्य को बनाया आजीविका का जरिया

जनजातीय संग्रहालय में विमुक्त और घुमंतुओं पर आधारित कार्यक्रम संवेग का आयोजन

कालबेलिया समाज की लड़कियों ने मजबूरी में पढ़ाई छोड़ नृत्य को बनाया आजीविका का जरिया

जिला देवास के ग्राम संदलपुर में रहने वाले कालबेलिया समाज की लड़कियां आसमान छूना चाहती हैं, लेकिन पारिवारिक आर्थिक तंगी के चलते लड़कियों को बीच में पढ़ाई छोड़ना पड़ी ताकि परिवार का सहयोग कर सकें। जनजातीय संग्रहालय में आयोजित संवेग कार्यक्रम में कालबेलिया समाज की लड़कियों ने पारंपरिक नृत्य करके समा बांध दिया। यह आयोजन विमुक्त जाति दिवस के अवसर पर जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी और बाबूलाल गौर शासकीय कॉलेज द्वारा आयोजित किया जो कि विमुक्त और घुमंतुओं की संस्कृति व जीवन पर आधारित है। इन लड़कियों ने अपने जीवन से जुड़े कुछ पहलुओं के बारे में चर्चा की। नृत्यांगना नैना पवार ने बताया कि स्कूल जाने का मन करता है, लेकिन स्कूल की फीस भरने की परिवार की स्थिति नहीं है। नृत्यांगना शिवानी कालबेलिया ने बताया कि गांव से स्कूल बहुत दूर है, इस वजह से आठवीं करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी।

मौका मिले को जरूर पढ़ाई करना चाहूंगी

मैं आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए फीस भरना मुश्किल हो रहा है, इसलिए मैंने बाहरवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी है। 15 साल की उम्र से पारंपरिक नृत्य कर रही हूं। नैना पवार, कलाकार

परिवार की मदद करने के लिए छोड़ दी थी पढ़ाई

मैंने आठवीं तक पढ़ाई की है, परिवार में पैसों की परेशानी के कारण बीच में पढ़ाई छोड़ दी। मैं कालबेलिया नृत्य की यहां तीसरी बार प्रस्तुति दे रही हूं। हम यह नृत्य शादी, होली और देव पूजन के समय करते हैं। चित्रा कालबेलिया, कलाकार

स्कूल दूर है इसलिए पढ़ाई छोड़ दी मैंने

स्कूल जाने का मन करता है, लेकिन गांव से स्कूल बहुत दूर है, इसलिए स्कूल जाना छोड़ दिया, मैंने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की है। अब मैं डांसर बनाना चाहती हूं, इसलिए पारंपरिक नृत्य से जुड़ गई। शिवानी कालबेलिया, कलाकार

घुमंतुओं को रोजगार देने के जरूरत है: डॉ.राठौर

विमुक्त और घुमन्तुओं की संस्कृति संदर्भ मप्र विषय पर मुख्य वक्ता रिटायर्ड पीसीसीएफ डॉ. बीएमएस राठौर ने कहा कि करीब तीन दशक तक घुमंतू और विमुक्त समुदाय के आस पास रहकर कार्य किया। वन्य प्राणी अधिनियम आया, तो उनके सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया। विमुक्त और घुमंतुओं को आजीविका के साधन देने की आवश्यकता है। विमुक्त और घुमंतू समाज को जानने के लिए उनके पास जाना चाहिए ताकि उनके विकास कार्य में सहायता मिले।

सरकार से मदद मिले तो स्वरोजगार कर सकते हैं

कालबेलिया समाज के लोग सपेरे होते हैं, पूर्वजों का एक बसेरा नहीं था, इधर-उधर घूमते रहते थे। सरकार ने सांप पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया, इस कारण अब मजदूरी करके परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। पुरुष मजदूरी और महिलाएं गोदड़ी, बिछौना बनाकर मेले में ले जाकर बेचती हैं। सरकार मदद करे तो हम लोग स्वरोजगार से अपने परिवार चला सकते हैं। संतोष नाथ, कलाकार, कालबेलिया समाज