50 गांव को जोड़ने वाला वर्धाघाट पुल 5 साल में भी नहीं हो सका पूरा

50 गांव को जोड़ने वाला वर्धाघाट पुल 5 साल में भी नहीं हो सका पूरा

जबलपुर । पनागर विधनसभा अंतर्गत 50 गांव को जोड़ने वाला 1 करोड़ 90 लाख का वधार्घाट में बना अधूरा पुल प्रशाशन व आयुध निर्माणी के बीच विगत 5 सालो से परमिशन के चलते अधर में रह गया। एनओसी में पेंच फसा हैं। दरअसल वर्षो से ग्रामीणों को नए पुल का है इंतजार,पुल न बनने से अभी भी नदी के ऊपर बने टूटे पुल से जान हथेली पर रख कर ग्रामीण आवागमन करने मजबूर हैं। वहीं निर्माण गुणवत्ताहीन होंने के कारण एक हिस्सा ढह भी गया हैं। गौरतलब है कि पनागर विधान सभा के अंतर्गत आने वाला ग्राम रिठौरी से होते हुए परियट नदी निकलती है,जहा वर्षो पुराना नदी के ऊपर गांव से शहर को जोड़ने वाला क्षतिग्रस्त पुल बना हुआ है। सबसे बड़ी बिडंबना इस छोटे से पुल की यह है कि जरा सी बारिश के बाद यह पुल नदी के उफान में शमा जाता है। जिसके चलते ग्रामीणों का संपर्क शहर से टूट जाता है,जिसके चलते काम धंधा करने वाले ग्रामीण,स्कूल जाने वाले बच्चे महीनों गांव मे ही फस कर रह जाते है। आलम यह है कि गांव में अगर कोई गम्भीर रूप से बीमार पड़ गया तो एम्बुलेंस भी नही आ सकती,मजबूरन ग्रामीणों को 20 से 25 किलोमीटर का चक्कर लगा कर शहर जाना पड़ता है।

2015 में निर्माण हुआ था शुरू

2015 में ग्रामीणों की समस्याओं को देखते हुए पनागर विधायक विधायक इंदु तिवारी व सांसद राकेश सिंह के प्रयासों के चलते ग्रामीण विकास विभाग परिषर द्वारा स्वीकृत 1 करोड़ 90 लाख की लागत से नए पुल का निर्माण तो शुरु किया गया और पुल निर्माण का भूमि पूजन स्वयं सांसद राकेश सिंह ने किया। लेकिन काम शुरु होते ही इस पुल की गुणवत्ता के चलते एक हिस्सा ढह गया था,जिसमे काम मे लगे दो मजदूरों को गम्भीर छोटे आयी थी,वही जैसे तैसे 2017 में पुल का निर्माण तो हो गया। परंतु उसके बाद अचानक जब दोनों तरफ पुल के रैम्प उतारने की बारी आई तो काम रोक दिया गया। बताया जाता है कि जिस जगह पुल निर्माण किया गया है,उसके दूसरी तरफ आयुध निर्माणी खमरिया फैक्टरी की जमीन है ,जिसके तहत परमीशन न दिए जाने के कारण विगत 5 सालो से पुल आधे-अधूरे में हवा में लटका हुआ है।

फैक्ट्री के महाप्रबंधक से हुई है चर्चा

इस संबंध में जबलपुर ग्रामीण विकास विभाग परिषद के इंजीनियर जानकारी ली गई तो, उन्होंने बताया कि 2015 में पुल का निर्माण शुरु किया गया था,पुल भी बन कर तैयार है लेकिन एक तरफ आयुध निर्माणी की जमीन होने के चलते अभी तक परमीशन नही मिल पाई है। जिसके चलते पुल से नीचे उतरने के लिए रैंप का निर्माण नही हो पाया है,कई बार फैक्टरी के महाप्रबंधक से इस विषय में चर्चा हुई है ,जिनके द्वारा परमीशन के लिए पेपर हेडक्वार्टर कलकत्ता भेज दिए गए है।

परमीशन नहीं मिली थी तो क्यों शुरू किया था निर्माण

वहीं पुल के अधूरे निर्माण को लेकर क्षेत्रीयजनों ने विरोध भी किया हैं। उनका कहना है कि अगर परमीशन नहीं मिली थी तो पुल का निर्माण शुरु नहीं करना था। परमीशन पहले से नही दी गई थी तो 1 करोड 90 लाख का पुल निर्माण क्यों कर दिया गया ,विगत 5 साल बीत जाने के बाद भी परमीशन को लेकर पुल हवा में हिचकोले खा रहा है। किस प्रकार जनता के पैसों को पानी मे बहाया जा रहा है इसकी बानगी इस अधूरे पुल को देखने से मिलती है।

बारिश में इन गांवों को होती है परेशानी

पुल के निर्माण न होंने से वर्धाघाट, सुंदरपुर, सोनपुर, मटामर,घाना, तिलंगवा, काशी,जलगांव,पड़रिया, भर्दा टोला,पहारिया, गंजर,छितरी सहित अन्य गांव के लोगों को आवागमन प्रभावित होता हैं। ग्रामीणों के अनुसार अगर थोड़ी सी बारिश होती है तो उन्हें पुल का उपयोग करना बंद करना पड़ता है,जिसके कारण ग्रामीणों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों को आज भी नए पुल के चालू होने का इंतजार है,जिससे उन्हें वर्षो से हो रही परेशानी से निजात मिल सके।