हिंदू संस्कृति में जोड़ने और एकता पर ही जोर: भागवत

हिंदू संस्कृति में जोड़ने और एकता पर ही जोर: भागवत

भोपाल। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू संस्कृति सबको जोड़ने की बात करती है। छोटे से संघ का काम विश्वव्यापी हुआ। इसका और विस्तार हो सकता है। अनिवासी भारतीय जिस देश में भी रहें, वहां की धरोहर (असेट) बनें। संपूर्ण विश्व को एक करने का वातावरण ही भारत को विश्व गुरु बनाएगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत राजधानी के पीपुल्स आॅडिटोरियम में आयोजित विश्व संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने 15 देशों में काम कर रहे स्वयं सेवक और 13 देशों में तैनात स्वयं सेविकाओं को कामकाज संबंधी टिप्स दिए। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के मूल और वसुधैव कुटुंबकम के भाव से पूरी दुनिया में संघ का काम फैल सकता है। नई पीढ़ी इस कार्य को आगे बढ़ाए। आचरण ऐसा हो कि हर कोई संघ का स्वयं सेवक बनने की लालसा रखने लगे।

पूंजी का चंगुल और गोहत्या बंदी

उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना के पहले कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में डॉ. हेडगेवार व्यवस्थापक और गांधीजी अध्यक्ष थे। तब हेडगेवार ने गौवंश हत्या रोकने, भारत की पूर्ण स्वतंत्रता व पूंजी के चंगुल से अन्य देशों की मुक्ति जैसे प्रस्ताव रखे थे। सांकेतिक रूप से उन्होंने विभाजनकारी परिस्थितियों में हिंदू संस्कृति को जोड़ने वाली बताया। उन्होंने कहा, दुनिया जब बाहरी सुख ढूंढ रही थी तब हमारे मनीषियों और उपनिषद ने अध्यात्म और अस्तित्व की एकता को खोजा।

बरगद की तरह है हमारी संस्कृति

कार्यक्रम की अध्यक्षता सांची बौद्ध भारतीय अध्ययन विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. नीरजा गुप्ता ने की। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति बरगद के पेड़ की तरह है, जो अपनी जड़ नहीं छोड़ती। इस अवसर पर राष्ट्रीय सेविका समिति की सहसर कार्यवाह अलका ताई और प्रांत संघचालक अशोक पांडे,मंत्री विश्वास सारंग, संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा और विधायक रामेश्वर शर्मा समेत 1,000 लोग मौजूद थे।