हत्या बलात्कार दुर्घटना की पड़ताल समय के साथ नहीं होगी कमजोर सालों बाद भी सुरक्षित रहेंगे साक्ष्य

एम्स भोपाल ने तैयार किया दुनिया का पहला सैंपल प्रिजर्वेशन ड्रायर

हत्या बलात्कार दुर्घटना की पड़ताल समय के साथ नहीं होगी कमजोर सालों बाद भी सुरक्षित रहेंगे साक्ष्य

भोपाल। हत्या, बलात्कार या खुदकुशी जैसे मामलों में लंबी जांच के दौरान अक्सर खून से सने कपड़े, वीर्य जैसे सबूत खराब हो जाते हैं। रिपोर्ट्स के मुतबिक करीब 30 फीसदी मामलों में पर्याप्त साक्ष्य न होने का असर जांच पर पड़ता है। अब ऐसी समस्याएं नहीं होंगी। दरअसल, एम्स भोपाल में ऐसे महत्वपूर्ण साक्ष्यों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए दुनिया का पहला सैंपल ड्रायर तैयार किया है। इस ड्रायर में सैंपलों को वैज्ञानिक तरीकों से सुखाकर प्रिजर्व किया जाएगा। अब तक इसे सुखाने के लिए पंखे और धूप का उपयोग होता है। इसमें सैंपल खराब होने की आशंका रहती है। एम्स के फॉरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी विभाग के एडि. प्रोफेसर डॉ. राघवेंद्र कुमार विदुआ ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को आईसीएमआर से मिले फंड के बाद तैयार किया गया है। इस प्रोजेक्ट को कॉपी राइट भी मिल गया है। प्रोजेक्ट के लिए एक साल शोध किया गया। इसके लिए एक विशेष प्रकार का कक्ष तैयार किया गया, जिसमें चारों तरफ से हवा का बहाव हो सके। हीटर,एअर ब्लोअर से सैंपल को सुखाते हैं।

यह होता है नुकसान

डॉ. विदुआ ने बताया कि मेडिकल कॉलेज और बड़े अस्पताल छोड़ दें तो अन्य जगहों पर साक्ष्यों को सुरक्षित रखने के तरीके की जानकारी नहीं होती। मसलन, रेप जैसे मामलों में सीमेन महत्वपूर्ण साक्ष्य होता है। लेकिन, पुलिस जल्दबाजी में उसे गीला ही पैक कर मालखाने में जमा कर देती है। चार- छह महीने बाद जब सैंपल लैब पहुंचते हैं, तो उनमें फंगस लग चुकी होती है। ऐसे में रिपोर्ट गलत हो सकती है। इसका असर केस की जांच पर पड़ता है।

इनको रख सकेंगे सुरक्षित

सैंपल ड्रायर में पानी, रक्त से भीगी हुई रूई, हड्डी के टुकड़े, मांसपेशियों के नमूने, रक्त के धब्बे, वीर्य और लार के दाग, कपड़ों के साथ अन्य साक्ष्य।

यह होगा फायदा

  •  सैंपलों को कई सालों तक सुरक्षित रखा जा सकेगा। 
  • खुले में सुखाने पर कीड़ों, चूहों या अन्य जानवरों का डर रहता है।
  • गीले सैंपल में फंगस लगने का भी डर रहता है। 
  • ड्रायर से सुखाने का समय भी 27 फीसदी तक कम हो जाएगा।

कैसे खराब हुआ था सैंपल, नहीं बन सका साक्ष्य :

ऐशबाग क्षेत्र में दो साल पहले युवती के साथ बलात्कार का मामला सामने आया। शिकायत के आधार पर कुछ लोगों को गिरμतार भी किया गया। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ लड़की के कपड़े पर लगे सीमेन को साक्ष्य के रूप में पेश किया। हालांकि दो महीने बाद जब कपड़े फॉरेंसिक लैब में पहुंचे तब तक उन पर फफूंद लग चुकी थी। ऐसे में कोर्ट में इन साक्ष्यों को पेश नहीं किया जा सका।

इस टीम ने यंत्र तैयार किया : फॉरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी विभाग के डॉ. राघवेंद्र कुमार विदुआ, डॉ. अरनीत अरोड़ा और डॉ. जयंती यादव। टीम का उद्देश्य नमूना सुखाने के लिए एक अत्याधुनिक यंत्र तैयार करना था।