जनजातीय कलाकारों ने झूमते- गाते किया ‘उन्मेष’ का प्रचार

जनजातीय कलाकारों ने झूमते- गाते किया ‘उन्मेष’ का प्रचार

रवींद्र भवन से लेकर न्यू मार्केट तक शाम 5.30 से लेकर 7 बजे तक अद्भुत नजारा देखने को मिला। पूरे भारत की जनजातीय संस्कृति की छटा भोपाल की सड़कों पर देखकर हर कोई दंग रह गया। बड़े-बड़े पारंपरिक मुखौटों और अपने वाद्ययंत्रों के साथ 500 कलाकारों ने एशिया के सबसे बड़े साहित्य उत्सव ‘उत्कर्ष और उन्मेष’ में भोपालवासियों को पधारने का निमंत्रण दिया।

जनजातीय नृत्यों की वेशभूषा में सजे कलाकार

गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्मेष का उद्घाटन दोपहर 12 बजे रवींद्र भवन में करेंगी। यह साहित्य उत्सव 3 अगस्त से लेकर 6 अगस्त तक आयोजित किया गया है, जिसमें कोई भी शहरवासी भाग ले सकता है। कला यात्रा में देश के 36 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के कलाकार शामिल हुए। यह यात्रा रवींद्र भवन से शुरू हुई, जो बाणगंगा चौराहा, रोशनपुरा, रंगमहल, टीटी नगर थाने होते हुए वापस रवींद्र भवन पहुंची।

सोंगी मुखौटा, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में सोंगी मुखौटा लोकनृत्य किया जाता है। होली पर्व के बाद महाराष्ट्र में यह नृत्य किया जाता है। कथा में दो कलाकार नरसिंह का रूप धारण कर नृत्य करते हैं और ढोल, पावरी तथा संबल वाद्य यंत्रों के माध्यम से पैदा हुई ध्वनि से कथा दर्शकों के समक्ष जीवंत हो जाती है।

कालबेलिया, राजस्थान

राजस्थान की सपेरा जाति का नृत्य कालबेलिया काफी पसंद किया जाता है। महिला नर्तकों की गति व लोच इस नृत्य की खासियत है। नृत्य को काले व लाल वस्त्रों में पेश करते हैं। वाद्ययंत्रों में डफली, खंजरी, मोरचंद, खुरालियो बजती है।

छपेली नृत्य, उत्तराखंड

छपेली नृत्य उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के पर्वतीय अंचल का लोकप्रिय नृत्य है। नृत्य के दौरान गायक हाथ में हुडका बजाता है और इसकी थाप पर जोड़ गाया जाता है। इसके जरिए अल्मोडा में नंदा देवी के मेले में चलने की बात कही जाती है।