मौत व चार मंजिला भवन गिरने पर भी नहीं जागा नगर निगम प्रशासन, तलघर से दरकने लगीं पड़ोस की दीवारें

मौत व चार मंजिला भवन गिरने पर भी नहीं जागा नगर निगम प्रशासन, तलघर से दरकने लगीं पड़ोस की दीवारें

ग्वालियर। भले ही बीते चार दिन पहले चार शहर के नाके पर अवैध रूप से मकान बनाने के चलते खोदे तलघर से चार मंजिला मकान पड़ोस के मकान पर गिरकर जमींदोज होने से एक मौत हो गई हो, लेकिन इतने पर नगर निगम प्रशासन की आंखे नहीं खुली है। हालात यह है कि अभी तक मौत के तलघर को खुला छोड़े रखा है। जिससे पड़ोस वाले मकानों की नींव धसकने व दीवारें चटकनी शुरू हो गई है।

साथ ही लोगों में फिर से मकान गिरने व मौत का तांड़व होने का भय छा गया है। उपनगर ग्वालियर के चार शहर का नाके इलाके में 22-23 अप्रैल की रात लगभग 11.30 बजे हरिशचंद्र राजपूत के मकान के बगल में उनके भाई महावीर राजपूत के प्लॉट पर निर्माण कार्य के लिए बेसमेंट खुदाई का काम चल रहा था।

इसी दौरान चार मंजिला मकान की नींव की मिट्टी निकलने से नींव धंसक गई और हरिशचंद्र राजपूत का चार मंजिला मकान तिलियों की तरह बिखर कर सीधे पड़ोसी नगर निगम कर्मचारी जगदीश कढ़ेरे के घर पर अचानक ही जा गिरा था। जिससे घटना का शिकार होने वाले जगदीश कढ़ेरे का मकान भी तुंरत ढह गया था और उस मकान के अंदर सो रहे जगदीश कढ़ेरे की दर्दनाक मौत हो गई थी।

एक साथ दो मकान गिरने के हादसे की सूचना मिलते ही निगम फायर अमला व पुलिस मौके पर पहुंच थी। वहीं एसडीआरएफ टीम के तीन घंटे तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन में दो जेसीबी मशीनों की मदद से मलबे को हटाने व जैक से छत को उठाने के बाद बुजुर्ग के शव को मलबे से बाहर खींचा जा सका था और मृतक के परिजनों द्वारा धरना प्रदर्शन करने के बाद अनदेखी करने वालों पर एफआईआर हुई थी।

पड़ोस के दो मकानों की चटक गई है दीवारें

तलघर खुदाई से अभी तक दो मकान गिर चुके है और एक मौत हो चुकी है, लेकिन अभी तक तलघर को जैसे के तैसे छोड़ रखा गया है। जिससे पड़ोसी प्रतापसिंह व ओमप्रकाश माहौर के मकान की नींव ने धंसकना शुरू कर दिया है और तलघर से 15 से 20 फुट दूर अंदर के कमरों की दीवारें भी चटकती जा रही है।

जर्जर मकान में रह रहे हैं पीड़ित

मृतक जगदीश कढ़ेरे के परिजन अभी भी मकान गिरने से बदहाल जिदंगी गुजार रहे है। स्थिति यह है कि चार मंजिला मकान के गिरने से बचे जर्जर हिस्से में अभी भी मृतक के परिजन रह रहे हैं और घर गृहस्थी का सामान दबने के बाद खुले में खाना-बनाकर जीवन यापन को मजबूर है।