पैरेंट्स के झगड़ों में न पड़ें बच्चे, उससे दूर रहकर अपनी मेंटल हेल्थ रखें ठीक

पैरेंट्स के झगड़ों में न पड़ें बच्चे, उससे दूर रहकर अपनी मेंटल हेल्थ रखें ठीक

अपने माता-पिता को झगड़ते देखना कठिन हो सकता है, लेकिन इसे ठीक करना आपका काम नहीं है..., यानी यह बच्चों की जिम्मेदारी नहीं है। यह कहना है, मनोचिकित्सक डॉ. आरएन साहू का। वे कहते हैं, छोटे बच्चे तो इस स्थिति में डरने के सिवा कुछ महसूस नहीं कर पाते लेकिन किशोरवय बच्चों को पैरेंट्स के मामलों, झगड़ों या लंबी बहसों के दौरान शामिल होने से खुद को रोकना चाहिए क्योंकि यह इनकी इमोशनल और मेंटल हेल्थ के लिए ठीक नहीं होता। स्कूल काउंसलर्स के पास आए दिन इस तरह के मामले आते हैं, जिसमें टीचर्स बच्चों को जब काउंसलिंग के लिए लेकर आती हैं, तब पता चलता है कि उनकी अनुशासनहीनता या उदासी का कारण घर में होने वाले झगड़े व लंबे समय तक बने रहने वाला तनाव भी होता है।

स्कूल में मनोविशेषज्ञों के पास आने वाले कुछ मामले

केस: 1- स्कूल में प्रिंसिपल काउंसलर के पास टीचर एक स्टूडेंट को लेकर आईं जो कि क्लास में ध्यान नहीं लगाता था और उसका व्यवहार भी सामान्य नहीं लगता था। कई बार बात करने पर पता चला कि वो क्लास में बैठकर सोचता कि घर पर मम्मी-पापा के बीच झगड़ा हो रहा होगा। इस केस में बच्चे को समझाया गया कि वो खुद को इन सबसे दूर रखे, क्योंकि वो कोई हल नहीं निकाल सकता बल्कि वो अपना समय और ऊर्जा बेकार करेगा। पैरेंट्स को भी समझाया गया।

केस: 2- क्लास की अच्छी पढ़ने वाली स्टूडेंट अचानक एक्टिविटीज से दूर रहने लगी। पता चला कि उसके पापा जो कि लंबे समय बाहर रहे और जब लोकल ट्रांसफर हुआ तो पैरेंट्स के बीच लड़ाई होने लगी। उसे लगा कि पापा वापस दूसरे शहर चले जाएं क्योंकि वो उसे बीच में शामिल करते थे कि वो बताए कि कौन सही और कौन गलत है, इस मामले में पैरेंट्स को कहा गया कि बच्ची को जज न बनाएं क्योंकि यह उसकी पढ़ाई और दिमागी हालत को बिगाड़ रहा है।

किसी भरोसेमंद दोस्त, काउंसलर से करें बात

हमारे पास अक्सर काउंसलिंग के दौरान टीचर्स ऐसे मामले लेकर आते हैं जिसमें पैरेंट्स एक-दूसरे को धमकियां देते हैं, गाली-गलौच करते हैं जिससे बच्चे बुरी तरह सहम जाते हैं। बच्चों को मेरा सुझाव होता है कि वे जब ऐसी परिस्थिति हो तो घर में किसी दूसरी जगह चले जाएं और जब मामला शांत हो जाए तब पैरेंट्स को बताएं कि उनके झगड़ों से पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। बच्चे सबसे पहले, अपने आप को याद दिलाएं कि पैरेंट्स की समस्याओं को ठीक करना उनकी जिम्मेदारी नहीं है। स्वस्थ तरीके ढूंढकर अपनी भलाई पर ध्यान केंद्रित करें, जैसे किसी भरोसेमंद दोस्त, स्कूल में शिक्षक या स्कूल काउंसलर से बात करना। यह समझें कि कभी-कभी शादियां उतार- चढ़ाव से गुजरती हैं और कपल गुस्से में एक-दूसरे को बहुत कुछ कह देते हैं। -डॉ. शिखा रस्तोगी, मनोविशेषज्ञ