सास को मेरा गाना बिलकुल पसंद नहीं था, इसी वजह से तीन दिन खाना नहीं खाया

सास को मेरा गाना बिलकुल पसंद नहीं था, इसी वजह से तीन दिन खाना नहीं खाया

गायन में भी कई शैलियां होती है जैसे शास्त्रीय,उपशास्त्रीय, लोक संगीत आदि। इन दिनों देखा जा रहा है कि अपने संगीत को पॉपुलर करने के लिए लोग गाने भी उलजुलूल लिख रहे हैं और गायक उन्हें गा भी रहे है। समस्या यह है कि आजकल लोग जल्दी पॉपुलर होना चाहते हैं और सोशल मीडिया उन्हें फेमस कर भी रहा है। मुझे आज भी याद है कि नौशाद साहब पहले गीत लिखवाया करते थ और फिर धुन तैयार होती थी। आजकल उल्टा होता है पहले धुन बन जाती है उसमें शब्दों को बस भर दिया जाता है। सही मायने में मैं उसे संगीत नहीं मानती। यह कहना था, बिहार की प्रख्यात लोक गायिका शारदा सिन्हा का, वे भारत भवन में गायन पर्व के अंतर्गत प्रस्तुति देने पहुंची थी। इस दौरान उन्होंने आईएम भोपाल से खास बातचीत में अपने अनुभव शेयर किए।

म्यूजिक कंपनी के ऑडिशन में रिजेक्ट हुई थी

मेरे ससुर को भजन-कीर्तन में रुचि थी। उन्होंने एक बार मंदिर में ठाकुर जी की सेवा में मुझे एक भजन सुनाने को कहा तब मेरी सास इतनी नाराज हुई कि उन्होंने तीन दिन तक कुछ नहीं खाया। तब मेरे ससुर और पति ने मेरा बहुत सपोर्ट किया। शारदा कहती हैं, 1971 में म्यूजिक कंपनी के ऑडिशन हुए, लेकिन हम सभी रिजेक्ट हो गए। इसके बाद दोबारा ऑडिशन दिया, दूसरे दिन जज के तौर पर बेगम अख्तर बैठी थीं। उन्हें मेरा गाना बहुत पसंद आया और मेरा सिलेक्शन हो गया। इसके बाद सास का अपना गुस्सा शांत हुआ।

जिया दुख पावे काहे पिया नहीं आवे...

भारत भवन में आयोजित गायन पर्व के अंतिम दिन विनोद ने प्रस्तुति की शुरुआत राग विराग में विलंबित एक तक की रचना ‘जिया दुख पावे काहे पिया नहीं आवे...' से की। इसके बाद मध्य लय तीन ताल में 'लगन तोसे लगी बालमा...’ सुनाई। उन्होंने चार ताल में मध्य लय की स्वयं की रचना बालमा ‘जाने नही दूंगी ...’ । इसके बाद चैती 'सेजिया पे सैय्या रूठ गैने हो रामा से' समा बाधा। उनके साथ तबले पर अभिषेक मिश्रा, हरमोनियम पर आयुष मिश्रा और सारंगी पर आबिद हुसैन ने संगत दी। सह गायन में आयुष मिश्रा रहे। ुवहीं कार्यक्रम की अगली प्रस्तुति पद्मभुषण से सम्मानित बिहार की लोकगायिका शारदा सिन्हा का हुआ। इसमें उन्होंने अपनी बेटी के साथ पहला गीत 'भगवति गीत', 'जय जय भैरवी....' (माता की वंदना) महाकवि विद्यापति की रचना से शुरुआत की। यह गीत मिथिलांचल में गाया जाने वाला गीत जिसमें मां दुर्गा का वंदन है। इसके बाद दूसरा गीत 'चौमासा' में 'उधो बारी बरस बिसर जाय रे कन्हैया के बुलाऐ दियो ना....' सुनाया। इसके बाद तीसरा गीत 'नचारी' में विद्यापति की रचना, 'हम नहीं रहेंगे अगर बूढ़ा दामाद लाऐ तो...' को 'हम नहीं आजु रहब ऐही आंगन....' सुनाया। इसी क्रम में 'झूमर' गीत में भोजपुरी एवं अवधि सब मिला जुला गीत महल पर कागा, बोला है रे.... सुनाकर कार्यक्रम का समापन किया।