1991 से कोर्ट में मामला अब सुर्खियों में आया

1991 से कोर्ट में मामला अब सुर्खियों में आया

 ज्ञानवापी विवाद अभी सुर्खियों में आया, लेकिन मामला 1991 से चल रहा है। उस समय सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय ने प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की तरफ से अदालत में मुकदमा दायर किया। हालांकि, मां शृंगार गौरी का मामला महज 7-8 महीने पुराना है। 18 अगस्त, 2021 में वाराणसी की एक अदालत में यहां की 5 महिलाओं ने मां शृंगार गौरी के मंदिर में पूजा- अर्चना की मांग की। इस याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने शृंगार गौरी मंदिर की मौजूदा स्थिति को जानने के लिए एक कमीशन का गठन किया। इसी कड़ी में कोर्ट ने शृंगार गौरी की मूर्ति और ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी कराकर सर्वे रिपोर्ट देने को कहा था और हंगामा छिड़ गया।

क्या हैं दावे

ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर से बिल्कुल सटी है। दावा किया गया है कि प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर मस्जिद बनाई गई है। 1991 में वाराणसी के सिविल जज की अदालत में इस संबंध में एक मुकदमा दायर किया गया था। काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास समेत तीन लोगों ने यह याचिका दायर की। दावा किया गया कि औरंगजेब ने भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़कर उस पर मस्जिद बना दी। अब उन्हें जमीन लौटाई जाए। उनके वकील ने सबूत के तौर पर कुछ पुराने नक्शे भी पेश किए थे। इसमें ज्ञानवापी मस्जिद के प्रवेश द्वार के बाद चारों तरफ हिंदू-देवताओं के मंदिरों का जिक्र है। कोने में विश्वेश्वर मंदिर, ज्ञानकूप और बड़े नंदी हैं। यहीं व्यास परिवार का तहखाना है, जिसका सर्वे और वीडियोग्राफी कोर्ट कमिश्नर को करना था।

मुस्लिम पक्ष ने कानून का दिया हवाला

इस मामले में मुस्लिम पक्ष हाई कोर्ट पहुंच गया और 1991 के उपासना स्थल कानून का हवाला दिया। उसका कहना था कि इस विवाद में कोई फैसला नहीं दिया जा सकता है। लेकिन अब वाराणसी की अदालत ने परिसर के सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश दिया, ताकि ये पता लग सके कि ज्ञानवापी परिसर में वाकई मंदिर तोड़कर मस्जिद बनी थी या मस्जिद का इलाका अलग है?

आज भी पूजा करता है व्यास परिवार

इस मामले में सबसे पहले कोर्ट पहुंचे व्यास परिवार के लोग अभी भी सालाना शृंगार गौरी की पूजा करते हैं। व्यास परिवार का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से पहले हाईकोर्ट आगरा था। उसने तय किया कि जमीन का मालिकाना हक व्यास परिवार का है, लेकिन उस पर बनी मस्जिद मुसलमानों की है। इस फैसले को वे आज भी मानते हैं। व्यास परिवार का दावा है कि मुस्लिम पक्ष के पास जमीन का एक भी कागज नहीं है। वहीं मुस्लिम पक्ष भी मानता है कि ज्ञानचंद व्यास की जमीन पर मस्जिद बनी है, मगर उसके मुताबिक ज्ञानचंद व्यास ने अपनी जमीन मस्जिद को अपनी मर्जी से दी थी।