संतों की वाणी गाने के लिए संतों जैसा आचरण जरूरी

संतों की वाणी गाने के लिए संतों जैसा आचरण जरूरी

नरहरि चंचल है मति मेरी, कैसे भक्ति करूं मैं तेरी..., जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात... राम नाम की महत्ता दर्शाते संत रविदास के पदों से सजी संगीत संध्या का आयोजन शुक्रवार को भारत भवन सभागार में किया गया। तीन दिवसीय संत रविदास समारोह के पहले दिन कपिल शर्मा एवं साथी कलाकारों ने संत रविदास के पदों का संगीतमय पाठ किया। इसके बाद वैशाली गुप्ता के निर्देशन में ‘वाणी मंगल’ की प्रस्तुति दी गई। साथ ही कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति पद्मश्री डॉ. भारती बंधु ने रैदास के पदों की दी। समारोह के दूसरे दिन 25 जून को सुबह 10 बजे सौरभ अनंत और साथी कलाकारों द्वारा रैदास के पदों की सांगीतिक प्रस्तुति दी जाएगी। 10.30 बजे संत साहित्य और रैदास विषय पर वैचाारिक सत्र का आयोजन किया जाएगा। शाम 7 बजे जान्हवी फणसलकर और धानी गुंदेचा द्वारा रैदास के पदों पर आधारित ध्रुपद जुगलबंदी होगी। 

11 पद और 10 दोहे सुनाए

कपिल शर्मा व साथी कलाकारों ने ‘जब राम राम कहि गावैगा, तब भेद अभेद सुनावैगा... ‘ से प्रस्तुति की शुरुआत की। इसी क्रम में तू मोहि देखे हौं तोहि देखूं प्रीत परस्पर होई तू मोहि देखे तो ही न देखूं यह मति सब बुधि खोई...’ पद को सुनाया तो उपस्थित श्रोताओं ने तालियों के साथ स्वागत किया। अगली कड़ी में ‘सब घट अंतर रमसी निरंतर, मैं देखन नहीं जाना, गुन सब तोर मोर सब औगुन कृत उपकार न माना...’ की प्रस्तुति दी। इस दौरान दस कलाकारों ने 11 पदों और 10 दोहे को प्रस्तुत किया। 

बैठक शैली में दी वाणी मंगल की प्रस्तुति

इसके बाद वाणी मंगल की प्रस्तुति दी, जिसमें संकलन एवं निर्देशन वैशाली गुप्ता का रहा। बैठक शैली में प्रस्तुति दी गई। जिसमें ‘बेगम पुरा सहर को नाउ, दूखु अंदोहु नहीं तिहि ठाउ...’, ‘भरि भरि देवै सुरति कलाली, दरिया पीना रे, पीवतु पीवतु आपा जग भूला...’, ‘देखे, सुनै, बोलै, दौंरेयो फिरतु है...‘समाज को सीख देते संत रविदास के इन पदों के गायन ने श्रोताओं को रसास्वादन किया। 

प्रभु तुम चंदन हम पानी कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति पद्मश्री डॉ. भारती बंधु ने दी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरूआत ‘प्रभु तुम चंदन हम पानी...’, इसके बाद ‘अब कैसे छूटे राम, नाम रट लागी...’, ‘भज ले हरी-रही, जप ले हरी-हरी...’, की प्रस्तुत किया। 

नई शिक्षा नीति में संत वाणी को करें शामिल, हम जैसे कलाकारों की योग्यता व दक्षता का लें लाभ: पद्मश्री डॉ. भारती बंधु

मैं कबीर का गायन करता हूं और यह मेरे 52 सालों के लगातार मेहनत व प्रयास का प्रतिफल है, जिसमें मैंने करीब 7500 से ज्यादा शो किए हैं। यह कहना है कि पद्मश्री डॉ. भारती बंधु का जो कि शुक्रवार को भारत भवन में आयोजित संत रविदास समारोह में अपनी प्रस्तुति देने आए हुए थे। उन्होंने कहा कि इसमें क्लासिकल भी है, सूफी भी है, इसमें मैंने म्यूजिक के साथ गायकी व शायरी को जोड़ा है, लेकिन मुख्य रूप से इसमें कबीर के दोहे ही शमिल है। मेरा बेटा इस परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। मैं पांचवीं और मेरे बच्चे छठवीं पीढ़ी हैं, जो कबीर के पदों का गायन कर रहे है। कार्यक्रम में उन्होंने संत रविदास के भजनों की संगीतमय प्रस्तुति दी। डॉ. भारती कहते हैं कि संतों की वाणी भारतीय संस्कृति का प्राण हैं और हमारे संत ही हमारी संस्कृति हैं। संतों की वाणी का गायन करने के लिए संत बनना जरूरी है। हमारा रहन-सहन, आचरण, चरित्र और वाणी संतों जैसी ही होनी चाहिए। तभी हम संतों का संदेश आमजन तक प्रभावी तरीके से पहुंचा सकते हैं। संत संगीत के प्रति समर्पण जरूरी है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को संतों की वाणी की शिक्षा दी जानी चाहिए। नई शिक्षा नीति में संत संगीत को शामिल भी किया गया है। अब सरकार को चाहिए कि हम जैसे भक्ति संगीत गुरुओं का लाभ ले। हालांकि स्कूल कालेज में इसकी आधारभूत जानकारी ही दी जा सकती है। स्कूल और कॉलेजों में बेसिक जानकारी के लिए ‘संतों की वाणी’ को पढ़ाना चाहिए। हम जैसे बहुत लोेग हैं, हमारी योग्यता व दक्षता का लाभ लेना चाहिए।