दुनियाभर के 99% लोग ले रहे हैं गंदी हवा में सांस

दुनियाभर के 99% लोग ले रहे हैं गंदी हवा में सांस

जिनेवा। वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य सगठंन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में एक डाटा जारी किया है, इसके मुताबिक दुनिया में एयर क्वालिटी की मॉनिटरिंग पिछले 10 सालों में 6 गुना बढ़ी है। कई देशों ने एयर क्वालिटी की निगरानी करने पर काम किया है। मॉनिटरिंग स्टेशन भी लगाए हैं, लेकिन इससे एयर पॉल्यूशन कम नहीं हुआ। यानी अब दुनिया के 6 हजार शहरों को पता है कि उनके शहर की हवा में जहर की मात्रा कितनी है, लेकिन उसे सुधारने के लिए वो कुछ कर नहीं पाए। इसके चलते दुनियाभर में लगातार खतरा बढ़ता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर साल प्रदूषण से 70 लाख लोगों की जान चली जाती है। इसके साथ ही डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया की 99 फीसदी आबादी गंदी हवा में सांस ले रही है। इसका मतलब धरती पर मौजूद 797 करोड़ लोग वायु प्रदूषण में जी रहे हैं। वहीं सिर्फ 1 फीसदी ही शुद्ध हवा ले रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने इस रिसर्च में पीएम 10 और पीएम 2.5 की जांच की। ये हवा में मौजूद ऐसे कण होते हैं, जिनका आकार 10 माइक्रोमीटर या उससे कम और 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है, इनकी वजह से समय से पहले ही मौत भी हो सकती है।

इस वजह से बढ़ रहा है वायु प्रदूषण का खतरा

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड शहरों की प्रदूषित हवा में बहुत ज्यादा मौजूद रहता है। ये जहरीली गैस ही पीएम 10 और पीएम 2.5 के बढ़ने का एक बड़ा कारण बनती है और इसकी वजह से पर्यावरण में मौजूद ओजोन की परत भी कमजोर पड़ रही है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस कोयला, तेल, डीजल और दूसरी गैसों के तेज तापमान पर जलने की वजह से बनती है।

शरीर के लिए हानिकारक है वायु प्रदूषण

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के ज्यादा बनने से फेफड़ों में सूजन होती है। सांस की नलियां सूज जाती हैं।

खांसी और अस्थमा की समस्या बढ़ सकती है और फेफड़ों के काम करने की क्षमता कम हो जाती है।

इसी तरह से पार्टिकुलेट मैटर यानी हवा में मौजूद धूल के कणों से भी बहुत नुकसान होता है।

हवा को जहर बनाने के लिए जिम्मेदार हैं ये चीजें

डब्ल्यूएचओ के अनुसार गाड़ियों का धुआं, पॉवर प्लांट, खेती से निकलने वाला वेस्ट, इंडस्ट्री से निकलने वाला धुंआ आदि मिलकर किसी भी शहर की हवा को जहर बनाने का काम करते है। धूल के ये कण इतने बारीक होते हैं कि फेफड़ों में और यहां तक कि खून में भी घुल जाते हैं। इन कणों के शरीर में जमा होने से दिल की बीमारियां, ब्रेन स्ट्रोक और सांस की गंभीर बीमारियां होती हैं, जो मौत का कारण भी बन सकती हैं। इसबीच विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारकों की ओर ध्यान देना जरूरी है।

117 देशों के 6743 शहरों से लिया गया डाटा

डब्ल्यूएचओ ने ये डाटा 117 देशों के 6743 शहरों से लिया है। इन शहरों की कुल आबादी लगभग नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का डाटा 74 देशों के 3976 शहरों से मिल पाया है। हालांकि सबसे ज्यादा डाटा एकत्र करने वाले देश चीन, भारत, उत्तरी अमेरिका और यूरोप हैं। सबसे कम पीएम यूरोप में पाया गया जबकि सबसे कम नाइट्रोजन डाईऑक्साइड अमेरिका में पाया गया। विदित है कि नाइट्रोजन डाईऑक्साइड का स्तर 2017 के डाटा के आधार पर नापा गया है। इनडोर एयर पॉल्यूशन में इस गैस की मात्रा ज्यादा होती है।