देश की सबसे पुरानी दवा कंपनी सिप्ला बिकने की कगार पर

दुनिया की सबसे बड़ी इक्विटी फर्म ब्लैकस्टोन ने लगाई बोली

देश की सबसे पुरानी दवा कंपनी सिप्ला बिकने की कगार पर

नई दिल्ली। देश की तीसरी सबसे बड़ी फार्मा कंपनी सिप्ला (द केमिकल इंडस्ट्रियल एंड फार्मास्युटिकल लेबोरेट्रीज) बिकने जा रही है। 1.2 लाख करोड़ के मार्केट कैप वाली यह कंपनी विदेशी कंपनी के हाथों बिकने जा रही है। इस कंपनी को खरीदने की रेस में दुनिया की सबसे बड़ी इक्विटी फर्म ब्लैकस्टोन सबसे आगे चल रही है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो ब्लैकस्टोन ने एलपी (लिमिटेड पार्टनर्स ) के साथ मिलकर सिप्ला के प्रमोटर्स की पूरी हिस्सेदारी खरीदने के लिए नॉन बाइंडिंग बोली लगाई है। पूरी 33.47 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की तैयारी: मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ख्वाजा हामिद की फैमिली कंपनी में अपनी पूरी 33.47 फीसदी की हिस्सेदारी बेचने जा रही है। सिप्ला देश की सबसे पुरानी दवा कंपनी है, जो मुनाफे से ज्यादा इस बात पर जोर देती है कि दवा की कीमत कम रखी जाए।

उत्तराधिकारी का अभाव कारण कंपनी बिकने की बड़ी वजह

उत्तराधिकारी की कमी है। साल 1935 में ख्वाजा अब्दुल हामिद ने कंपनी की शुरुआत की। 1972 में उनकी मृत्यु के बाद कमान युसूफ हामिद को दी गई। युसूफ हामिद 87 साल के हो चुके हैं। वे चेयरमैन और एमके हामिद ( वाइस चेयरमैन) दोनों सेकंड जेनरेशन के हैं। इसी वजह से उन्होंने साल 2015 में सिप्ला के बोर्ड में अपनी भतीजी समीना हामिद को शामिल किया। एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरपर्सन समीना फैमिली की थर्ड जेनरेशन हैं और कंपनी को वहीं संभाल रही है। यानी कंपनी को संभालने वाला आगे कोई नहीं है।

फ्री में बांटी एड्स की दवाएं

कोविड के दौर में भी सिप्ला से सस्ती दवाएं बांटकर मदद की। साल 2000 के आसपास तक एड्स का प्रकोप अमेरिका, यूरोप तथा अफ्रीकी देशों में फैला था। इसकी दवा इतनी महंगी थी कि बहुत से लोग खरीद नहीं पा रहे थे। उस समय सिप्ला ने एड्स की न सिर्फ कम कीमत वाली दवा बनाई, कंपनी ने दवा की तकनीक को गरीब देशों को बांट दिया।

जेनेरिक दवाओं की शुरुआत साल 1972 में

सिप्ला ने हृदय रोगों दवा ढ१ङ्मस्र१ंल्लङ्म’ङ्म’ का जेनेरिक वर्जन तैयार किया। इस पर ब्रिटिश कंपनी इम्पीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज ने केस कर दिया। युसूफ हामिद ने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी से मुलाकात की और सवाल किया कि क्या लाखों भारतीयों को दवा इसलिए नहीं मिलनी चाहिए, क्योंकि उस दवा को बनाने वालों को हमारे लोग पसंद नहीं है। इसके बाद भारत सरकार ने पेटेंट कानून बदल दिया। सिप्ला के कदम ने देश में जेनेरिक दवाओं का रास्ता खोल दिया।