अच्छी उपज के लिए रंग-गुलाल से होती है देव पूजा

अच्छी उपज के लिए रंग-गुलाल से होती है देव पूजा

जबलपुर।  मंडला, डिण्डौरी सहित शहडोल संभाग के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में रहने वाली जनजातियां प्रकृति प्रेमी होने के कारण अपने तीज-त्योहारों को प्रकृति के साथ मिलकर मनाती हैं। इस परंपरा की झलक होली के त्योहार पर अंचल में दिखाई देती है। खास तौर पर फाल्गुन माह के शुरू होते ही बैगा आदिवासियों पर होली का खुमार चढ़ना शुरू हो जाता है। होलिका दहन के दूसरे दिन ये अपने ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा कर उन पर धूप, फूल, रंग गुलाल और पानी चढ़ाकर उनसे सुख समृद्धि की कामना करते हैं। इसके बाद गौशाला में मुर्गे की बलि चढ़ा कर हाथ से बना महुआ रस भेंट कर त्यौहार की शुरुआत करते हैं। होली के दूसरे दिन से पंचमी तक बैगाओं द्वारा फाग गाया जाता है। इसमें महिलाएं भी घेरा बनाकर गांव में पानी की समस्या पर फाग गाकर देवता को सुनाती हैं। यह प्रार्थना पानी की कमी के चलते फसल प्रभावित होने से बचाने के लिए है। फाग गाते समय महिलाएं एक दूसरे की कमर पर हाथ रखकर मांदल बजाने वाले के चारों तरफ घूमती हैं। इनके फाग गीतों के बोल बैगानी भाषा के होते हैं।