भारत की सफीना हुसैन को मिला वाइज पुरस्कार

शालात्यागी कन्याओं को शिक्षा दिलाने पर मिला इनाम

भारत की सफीना हुसैन को मिला वाइज पुरस्कार

नई दिल्ली। गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) एजुकेट गर्ल्स की संस्थापक सफीना हुसैन को भारतीय गांवों में स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाली 14 लाख लड़कियों को मुख्यधारा की शिक्षा में वापस लाने के लिए प्रतिष्ठित वाइज पुरस्कार से सम्मानित किया गया है और वह पांच लाख डॉलर की इनामी राशि वाला यह पुरस्कार पाने वाली पहली भारतीय महिला हैं। दिवंगत अभिनेता यूसुफ हुसैन की बेटी और फिल्म निर्माता हंसल मेहता की पत्नी सफीना को इस सप्ताह की शुरूआत में दोहा में वर्ल्ड इनोवेशन समिट फॉर एजुकेशन (वाइज) शिखर सम्मेलन के 11वें संस्करण में कतर फाउंडेशन ने इस पुरस्कार से सम्मानित किया। यह शिक्षा के क्षेत्र में दिए जाने वाले सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है। सफीना यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली दूसरी भारतीय हैं। इससे पहले प्रथम के सह-संस्थापक माधव चव्हाण को भारत में लाखों वंचित बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए 2012 में वाइज पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

बकरी को संपत्ति, कन्या को बोझ मानते हैं लोग

सफीना ने कहा, जब 16 साल पहले बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के बारे में किसी ने सुना भी नहीं था, तब मैंने स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों को मुख्यधारा की शिक्षा में वापस लाने के लिए एनजीओ एजुकेट गर्ल्स स्थापित किया था। भारत में 21वीं सदी में भी ऐसे गांव हैं जहां बकरियों को तो संपत्ति माना जाता है लेकिन लड़कियों को बोझ माना जाता है। लड़कियों को स्कूल से बाहर रखने या उन्हें अपनी शिक्षा पूरी किए बिना स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर करने के गरीबी से लेकर पितृसत्ता तक अनगिनत कारण हैं। उन्होंने कहा, मुझे इस बात के महत्व का एहसास तब हुआ जब मैं अपने परिवार की कठिन परिस्थितियों के कारण तीन साल तक पढ़ाई नहीं कर पाई। सफीना की किस्मत ने तब करवट ली जब तीन साल बाद उनकी एक रिश्तेदार ने उन्हें फिर से शिक्षण संस्थान भेजने का बीड़ा उठाया ।

कहानियां दुखद : लेकिन भविष्य उज्ज्वल

सफीना ने जब ग्रामीण राजस्थान में यह मुहिम शुरू की थी तो उन्हें पारिवारिक उदासीनता, प्रेरणा की कमी और लड़कियों की अनिच्छा जैसी प्रमुख बाधाओं का सामना करना पड़ा। उनकी मुहिम अब मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश तक फैल गई है। सफीना और उनकी टीम बालिका गांव-गांव जाकर और हर घर का दरवाजा खटखटाकर यह पता करती है कि क्या कोई लड़की ऐसी है जो स्कूल नहीं जा रही। उन्होंने कहा, यह मिशन बहुत व्यक्तिगत है इसलिए हमारा मॉडल भी व्यक्तिगत होना चाहिए। बाल विवाह के बाद छोड़ दी गई वधुओं से लेकर घरेलू काम करने के लिए मजबूर की गई लड़कियों तक हम जिन लड़कियों को स्कूल वापस लाने में सफल रहे हैं, उनकी कहानियां दुखद हैं लेकिन भविष्य उज्ज्वल है। यह एनजीओ स्कूल न जाने वाली लड़कियों की अधिक संख्या वाले गांवों की पहचान करने के लिए कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) की भी मदद ले रहा है। इस प्रयास से बड़ी संख्या में कन्याओं के जीवन में उजाला आया है।