प्रकृति और संस्कृति से सीधा साक्षात्कार करती लैंडस्कैप पेंटिंग

प्रकृति और संस्कृति से सीधा साक्षात्कार करती लैंडस्कैप पेंटिंग

स्टूडियो में या कमरे में फोटो देखकर लैंडस्कैप पेंटिंग में वो मजा नहीं है जो अमुक स्थान पर प्रत्यक्ष बैठकर चित्र बनाने में मिलता है। ये बात वरिष्ठ चित्रकार विनय सप्रे ने लैंडस्कैप पेंटिंग वर्कशॉप के आउटडोर सेशन में प्रतिभागियों को समझाई। सर्जना एकेडेमी फॉर डिजाइन एंड फाइन आर्ट्स द्वारा आयोजित पांच दिवसीय लैंडस्कैप पेंटिंग वर्कशॉप में तीसरे और चौथे दिन एक पार्क और शहर के मशहूर पुरातात्विक स्मारक ताजुल मसाजिद में लैंडस्कैप बनाए। प्रतिभागियों ने महसूस किया कि स्थान पर पहुंच कर चित्र बनाने से आप प्रकृति के हर रंग और रूप को ठीक से निहार सकते हैं। इसी तरह स्मारकों के चित्रण में स्थापत्य, इतिहास और परंपरा की जानकारी प्राप्त कर चित्र की विश्वसनीयता बढ़ जाती है। रविवार को वर्कशॉप प्रतिभागी और भोपाल स्केचर्स ग्रुप के साथ ताजुल मसाजिद में लैंडस्कैप बनाए। इस अवसर पर मस्जिद के संचालक प्रोफेसर डॉ मोहम्मद हसन खान और शायर बद्र वास्ती ने प्रतिभागियों को शहर के इतिहास मस्जिद निर्माण के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि सीमेंट की मस्जिद बनाना तो आसान और सस्ता भी था और उसमें समय भी कम लगता, लेकिन शाहजहां बेगम की ख़्वाहिश थी की मस्जिद पत्थर की हो। इस कारण चार गुना ज्यादा लागत और काफी वक़्त लगने के बाद ये नायाब मस्जिद बन पाई जो आज दुनिया भर में पत्थर की सबसे बड़ी मस्जिद है।