दो टाइम की रोटी नहीं थी, अब दूसरों को दे रही हैं रोजगार

दो टाइम की रोटी नहीं थी, अब दूसरों को दे रही हैं रोजगार

जबलपुर। जिस घर की महिला शिक्षित एवं सशक्त होती है, उस घर की उन्नति होना तय है। कुछ इसी उद्देश्य को लेकर 10 साल पहले चले अनुराग जैन ने सैकड़ों शहरी और ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सुधार में योगदान दिया है। कुछ सिलाई मशीनों से हुई शुरुआत अब 10 बड़े कारखाने में बदल गई है। पहले महिलाओं के बच्चे आंगनबाड़ी में पढ़ते थे अब इंग्लिश मीडियम स्कूल में जाते हैं।

दूसरे जिलों में भी फैलाया करोबार: महिलाओं के लिए जबलपुर में चंचलबाई कॉलेज के सामने, रामपुर छापर, दशमेश द्वार के पास, कटंगी, पौड़ी छपरी, बरेला डूंडी, ककरैटा, मंडला में मिलाकर12 कारखाने हैं।

महिलाओं ने बताया कैसे बदला जीवन : संजीवनी नगर गढ़ा निवासी आशा पटेल ने बताया कि 6 साल पहले घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। हालात ऐसे थे कि बच्चों को आंगनबाड़ी में पढ़ाने भेजना बड़ी बात लगती थी। अब अपने बच्चों को इंग्लिश स्कूल में पढ़ा पा रही हूं। पाटन उजरोड़ निवासी मनीषा केवट ने बताया कि साल 2016 में वह और उसका पति मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते थे। सिलाई का काम भैया से सीखा और आज खुद गांव के साथ पास के क्षेत्रों में प्रशिक्षण देकर कई महिलाओं को रोजगार देने लायक बन पाई हैं।

इतनी मिलती है मजदूरी: महिलाओं को एक पीस तैयार करने के 15 से 60 रु. मिलते हैं। उनके पास कटे हुए कपड़े आते है, जिसकी सिलाई करनी होती है। एक दिन में एक महिला 25 पीस तक तैयार कर लेती है, 500 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है।

सालों से ग्रामीण महिलाओं की समस्याएं देखते आ रहे थे। उनकी समस्या को देखते हुए कारखाने की शुरूआत की। कई बार उनके घर में दो वक्त के खाने तक की परेशानी हो जाती थी। लेकिन अब स्थिति अच्छी है। - अनुराग जैन, कारखाना संचालक