भारतीय परंपराओं को पुन: स्थापित करना होगा: ऊषा ठाकुर

भारतीय परंपराओं को पुन: स्थापित करना होगा: ऊषा ठाकुर

 रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में ‘इतिहास व संचार की भारतीय संस्कृति’ पर आधारित पुस्तक का विमोचन संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर ने किया। उन्होंने कहा कि आज अतीत को पढ़ना, वर्तमान गढ़ना और भविष्य की चौखट पर भारतीय परंपराओं को पुन: स्थापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने आह्वान किया कि घरों में प्रत्येक भारतीय को बलिदानियों के चित्र रखने चाहिए जिससे कि युवा पीढ़ी को पता चले कि बलिदानियों ने किस तरह से संघर्ष कर आजादी हासिल की। बतौर मुख्य वक्ता पूर्व अपर मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि हमने इतिहास को व्यक्ति और वर्षों तक सीमित कर दिया। हमें समुदाय का इतिहास, स्वास्थ्य का इतिहास, नदियों का इतिहास आदि की तरह इतिहास को जानने की आवश्यकता थी। भारतीय ज्ञान परंपराओं की विशेषताओं को जानना जरुरी है। शिक्षाविद प्रो. अमिताभ सक्सेना ने कहा कि यह भ्रांति फैलाई गई कि भारत में इतिहास लिखने की परंपरा नहीं थी सिर्फ श्रुति आधारित इतिहास लिखा गया। भारत में इतिहास रचा गया था और सत्य को मिटाया गया। कुलपति डॉ. ब्रम्ह प्रकाश पेठिया ने कहा कि विश्वविद्यालय कला और साहित्य को बढ़ावा देने के लिये निरंतर प्रयासरत है। कार्यक्रम में प्रो चांसलर श्री सिद्धार्थ चतुर्वेदी, प्रतिकुलपति डॉ. संगीता जौहरी संयोजक डॉ. सावित्री सिंह परिहार मौजूद रहीं।

इतिहास को सही करने का काम करना है

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने कहा कि यह विडंबना है कि हम कालिदास को शेक्सपियर और समुद्रगुप्त को नेपोलियन कहते हैं। जबकि कालिदास और समुद्रगुप्त, शेक्सपियर और नेपोलियन से बहुत पहले के हैं। हमें अपनों पर गर्व करना होगा। ऐसी भ्रांतियां फैलाई गई थी कि भारत वैज्ञानिक देश नहीं है। जबकि आर्यभट्ट, भास्कराचार्य और सुश्रुत का योगदान अतुलनीय है। यूरोप के नवजागरण में भारतीय विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका थी। हमें अपनी परंपराओं और इतिहास को पहचानना है।