हर तीर्थस्थल को लेकर श्रद्धा होना चाहिए, चाहे वो अयोध्या हो या मक्का : आरिफ मो.खान

रवींद्र भवन में चल रहे साहित्य उत्सव में शिक्षा व रचनात्मकता और भक्ति परंपरा पर हुई चर्चा

हर तीर्थस्थल को लेकर श्रद्धा होना चाहिए, चाहे वो अयोध्या हो या मक्का : आरिफ मो.खान

रवींद्र भवन में चल रहे उन्मेष साहित्य उत्सव के दूसरे दिन केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद रहे। उन्होंने भारत का भक्ति साहित्य सत्र की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि मैं जैन परंपरा से अपनी बात की शुरुआत करूंगा क्योंकि वो भक्ति परंपरा को समझने में मदद करती है। उन्होंने गुजरात के राजा कुमार पाल और उनके समकालीन जैन आचार्य हेमचंद की कहानी सुनाई तो सभागार तालियों से गूंज उठा। उन्होंने सुनाया कि राजा, आचार्य हेमचंद से प्रभावित थे और उनके साथ समय बिताते थे, लेकिन दरबारी विद्वानों को यह नहीं भाया। वे आचार्य हेमचंद को राजा की नजरों से गिरा देना चाहते थे। एक बार राजा द्वारका तीर्थ पर गए तो दरबारी खुश हुए कि अब तो आचार्य भगवान की आरती नहीं करेंगे क्योंकि यह दूसरे धर्म से हैं, लेकिन राजा ने आरती की थाली आचार्य के हाथ में दी तो उन्होंने कहा कि मुझे इससे मतलब है कि भगवान का नाम क्या है मैं तो वीतराग आत्मा(वह जिसने राग या आसक्ति आदि का परित्याग कर दिया हो)को प्रणाम करता हो। इस कहानी को सुनते ही सभागार में मौजूद सभी लोगों ने तालियां बजार्इं। आगे आरिफ मोहम्मद ने कहा कि हमारे भीतर हर तीर्थस्थल को लेकर श्रद्धा होना चाहिए चाहे वो अयोध्या हो या मक्का।

सनातन का मतलब हिंदू नहीं समावेशी परंपरा है

गांधीजी जब शहीद हुए तो लंदन टाइम्स ने एडिटोरियल में लिखा कि केवल और केवल भारत और केवल और केवल सनातन परंपरा ही गांधी पैदा कर सकती है। आरिफ मोहम्मद ने कहा सनातन परंपरा का अर्थ क्या है यह भी जान लें वरना लोग कहेंगे कि सनातन मतलब हिंदू। जो अपने पहले दिन से समावेशी परंपरा है जिससे किसी को बाहर नहीं किया जा सकता। हर कोई अपनी पहचान के साथ उसका हिस्सा बन सकता है। इसमें इबादत के तरीके में बंधन नहीं होता।

जो इंटरनेट पर नहीं है वहीं लिखें यात्रा वृतांत 

यात्रा वृतांत लिखना आज बहुत कठिन हो गया है क्योंकि इंफॉर्मेशन बहुत ज्यादा उपलब्ध हो गई है, अब ट्रैवेलॉग वहीं लिख सकता है जो ऐसी सूचना निकालकर लाए जो इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं है। यह काम अब सोशल टूरिज्म से होगा। टूरिज्म, केवल इमारतें देखना, शहर देखना नहीं है बल्कि लोगों के जीवन को देखना है और उस जीवन से कुछ ऐसा निकालना है जो आकर्षक लगे और जिसे देखकर उत्साह जागे। वहीं अगर नाटक की बात करूं तो नाटक में जो बोला जा रहा है उससे केवल मनोरंजन व आनंद न आए बल्कि आप कुछ सोचे। आनंद लेकर उठकर चले जाएं नाटक ऐसा न हो बल्कि दर्शक का कुछ विचार बने यह नाटक है। असगर वजाहत, साहित्यकार

जोड़ो, तोड़ो और जोड़ो पर होगी प्राइमरी पाठ्यचर्या

नेशनल एजुकेशन पॉलिसी की पाठ्यचर्या जल्दी ही सभी के सामने होगी। इसमें मुख्य बिंदु है कि शिक्षा का आधार हर बच्चे की भीतर की क्वालिटी को निखारना है, लेकिन एक ही तरीके से नहीं बल्कि हर गुण को निखारने के लिए अलग तरीके शिक्षकों को इजाद करना होंगे। जोड़ो, तोड़ो और फिर जोड़ो की नई पद्धति प्राइमरी एजुकेशन के लिए विकसित की है। मुझे याद है कि अकबर इलाहबादी ने कहा है, हम क्या कहें अहबाब(मित्र), क्या कार-ए-नुमाया कर गए, बी.ए. हुए, नौकर हुए, पेंशन मिली फिर मर गए। शिक्षा का मतलब नौकरी हासिल करना नहीं होना चाहिए, अन्यथा वो शिक्षा नहीं है। -गोविंद प्रसाद शर्मा, सदस्य, नेशनल बुक ट्रस्ट