जनजातीय संस्कृति के साथ पारंपरिक आदिवासी भोजन का उठा सकेंगे लुत्फ

जनजातीय संस्कृति के साथ पारंपरिक आदिवासी भोजन का उठा सकेंगे लुत्फ

 शहर के फूड लवर्स के लिए जनजातीय संग्रहालय में नई सुविधा शुरू होने जा रही है। इन दिनों जनजातीय संग्रहालय मप्र की 7 जनजातियों के आवास तैयार कर रहा है। जहां इन जनजातियों का पारंपरिक भोजन भी परोसा जाएगा। इन आवासों को आदिवासी कलाकार ही अपनी विशिष्ट जीवन शैली के मुताबिक बना रहे हैं और उसका वास्तुशिल्प विकसित कर रहे हैं। इससे आदिवासियों के रहन-सहन के अलावा इनके घरों की संरचना को भी आम लोग समझ सकेंगे। इनके खान-पान को जानने का मौका मिलेगा।

आवासों में ये रहेगा खास

इन आवासों में अनाज रखने की कोठी, खाट, रोज उपयोग में आने वाली सामग्री और रसोई विशेष रूप से देखने को मिलेगी। खास बात यह कि इन घरों को इन जनजातियों के कलाकार ही तैयार कर रहे हैं। जिनके माध्यम से शहर के लोग मप्र के आदिवासी समुदायों को करीब से जान और समझ सकेंगे।

4 आवास बनकर तैयार, तीन पर चल रहा काम

जनजातीय संग्रहालय में बन रहे घरों का करीब 70 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है। इसमें मुख्य रूप से भील, गोंड, सहरिया के घर बनकर तैयार हैं। इसके अलावा भारिया, कोरकू कोल और बैगा जनजाति के घरों का काम इन दिनों तेजी से किया जा रहा है। यह घर संग्रहालय के पीछे स्थित खाली जगह में बनाए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि यह घर इस साल के अंत या 2024 तक बन जाएंगे। इसके अलावा संग्रहालय के अधिकारियों ने बताया कि यहां आदिवासी अपने पारंपरिक घरों को तैयार करने के लिए अपने क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने वाली निर्माण सामग्री का ही इस्तेमाल कर रहे हैं।

बांस की टाट पर मिट्टी की छपाई का काम

बैगा जनजाति का आवास बनाने वाले डिण्डौरी के बजारी सिंह ने बताया कि घर में बांस की टाट पर मिट्टी और भूसे से छपाई है। यह बैगा जनजाति के घरों की पहचान होती है। घर के अंदर मचिया, खटिया, जुड़े हुए चूल्हे भी बनाए हैं। अनाज रखने के लिए बांस से खुटरी बनाई गई है। जिसमें मिट्टी से छपाई की है और इसमें अनाज रखा गया है।

आदिवासी अपने लाए मसालों से बनाएंगे खाना

ट्राइबल म्यूजियम के अध्यक्ष अशोक मिश्रा ने बताया कि इस योजना के अंतर्गत प्रदेश की सात जनजातियों के आवास निर्मित किए जा रहे हैं। जहां उनके ट्रेडिशनल फूड को सर्व किया जाएगा। वहीं, स्वाद बरकरार रखने के लिए खान पान की मूलभूत चीजों वह आदिवासी खुद अपने इलाकों से ही लाएंगे। इसे बनाने का उद्देश्य यह भी है कि शहर के लोग यह जान सकें कि स्वाद कृत्रिम चीजों में नहीं है वास्तविक स्वाद ग्रामीण परिवेश में भी होता है।