चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन इंडिया के वेबीनार में बाल विवाह एवं बालश्रम पर चर्चा 

चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन इंडिया के वेबीनार में बाल विवाह एवं बालश्रम पर चर्चा 

भोपाल। बाल श्रम और बाल विवाह भारतीय लोकजीवन की उन्नत तस्वीर पर बदनुमा दाग की तरह है। आज भी समाज में 28 फीसद बच्चियां बाल विवाह के चलते असमय काल के गाल में समा जाती हैं, वहीं बालश्रम का आंकड़ा भी कम होता नजर नहीं आ रहा। कुछ इसी तरह का निष्कर्ष चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन इंडिया द्वारा आयोजित वेबीनार में सामने आया। वेबीनार में मप्र की सहायक श्रमायुक्त पी जास्मीन और बाल विवाह कानून विशेषज्ञ डॉ अभिजीत सिंह  राठौड़ ने 12 राज्यों से जुड़े बाल अधिकार कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। वेबीनार में फाउंडेशन अध्यक्ष राघवेन्द्र शर्मा और सचिव डॉ. कृपाशंकर चौबे ने भी विषय के संबंध में अपनी राय साझा की। बाल विवाह के चलते अब भी 28 फीसद बच्चियां असमय होती हैं मौत का शिकार
वेबीनार को संबोधित करते हुए  मप्र की सहायक श्रमायुक्त पी जास्मीन ने बाल श्रम निषेध कानून 1986 एवं संशोधित कानून 2016 को लेकर बुनियादी जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि मप्र में बाल श्रम रोकने के लिए सरकार ने हर जिले में कलेक्टर के अधीन एक टास्क फोर्स तो बनाया ही है साथ ही ऑनलाइन शिकायत पोर्टल भी है जिस पर कोई भी व्यक्ति बाल श्रम मामले की शिकायत दर्ज करा सकता है।शिकायत करने वाले का नाम गोपनीय रखने की व्यवस्था इसमें है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में भवन सनिर्माण कर्मकार मंडल,एवं असंगठित कर्मकार मंडल के नाम से दो महत्वपूर्ण पुनर्वास ,कल्याण योजनाएं संचालित है। इनमें 42 प्रकार की विभिन्न मदद की जाती है। बाल श्रम के मामले में समाज की भूमिका को अहम बताते हुए उन्होंने कहा कि कानून की सख्ती के बाबजूद समाज में यह इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि हम अपनी जबाबदेही से किनारा करते है।
विधिवेत्ता और बाल विवाह कानून विशेषज्ञ डॉ अभिजीत सिंह  राठौड़ ने  विधिक पहलुओं पर व्यवहारिक नजरिये से प्रकाश डालते हुए बताया कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2007 भारत के अलावा देश से बाहर रहने वाले भारतीयों पर भी लागू होता है।  उन्होंने यह भी बताया कि इस अधिनियम के तहत पीड़ित महिला पक्षकार को धारा 4 में भरण पोषण की पात्रता भी है। जबकि धारा 5 बाल विवाह से उत्पन्न बच्चों को सामाजिक सुरक्षा और वैधता दिलाती है। एक सवाल के जबाब में श्री राठौड़ ने स्पष्ट किया कि बाल विवाह प्रतिषेध कानून भारत के सभी नागरिकों पर लागू है इसलिए कोई सम्प्रदाय विशेष इस कानून से परे होने का दावा नही कर सकता है।
फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने इस बात पर अफसोस जताया कि 21 वी सदी में सम्पन्नता औरÞ समृद्धि के दावों के बीच हमें बाल विवाह और श्रम जैसे मुद्दों पर समेकित होना पड़ रहा है।

फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने इस सेमिनार का बेहतरीन संयोजन किया। सेमिनार में मप्र ,बिहार, यूपी, झारखण्ड, हिमाचल, उत्तराखण्ड, छतीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, आसाम ,राजस्थान राज्यों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।